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जैन महाभारत
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गया. सावधान. सावधान!"
जब ऐसी आवाजें अर्जुन के कान मे पड़ती हैं तो उसे अपने पुत्र पर गर्व होने लगता है। परन्तु-अभिमन्यु अपने बाणो से प्रलय मच ता हुआ चीखते हुए कौरव सैनिको को खदेड देता है. । -उसने अकेले ही पौरव, कृतवर्मा जयद्रथ, शल्य आदि चार महारथियो का मुकावला किया। और चारो महारथियो के डट कर मुकाबला करने पर भी अभिमन्य ने उन्हे परास्त कर दिया। - इसके बाद भीम और शल्य के बीच गदायुद्ध छिड़ गया भीमसेन जब भीषण सिंहनाद करके झपटता तो दूर खड़े 'कौरव सैनिको का दिल काप जाता . शल्य ने कितनी ही देर तक भीमसेन की गदा का मुकावला किया । जव सूर्य सिर पर आ गया और आकाश से अग्नि वाण बरसाने लगे, शल्य पसीने से तरबतर होकर हापने लगा, पर भीमसेन वार पर वार किए जा रहा था। अन्त में शल्य का साहस जाता रहा और उसे रण क्षेत्र छोडते हो वना।
शल्य की रण क्षेत्र से भागते देख और भीमसेन को पीछा करते हुए कौरव सनिक पर वज्र की भाति टूटते देख कर कौरव सेना में खलबली मच गई । सैनिको का साहस डगमगाने लगा। 'भागो, भागो' की ध्वनि गूज उठी और कौरव सनिक भीमसेन की गदा से बचने के लिए पीठ दिखा कर भागने लगे।
द्रोण ने यह देखा तो सैनिको का साहस बढाने के लिए उन्हो ने अपने सारथि को आदेश दिया- 'मेरा रथ तीव्र गति से उस पोर ले चलो जहां युधिष्टिर है। "
द्रोण के रथ मे सिन्धु देश के वार फुरतीले और सुन्दर घोड़े जुते थे, सारथि ने चाबुक मारी और घोड़ कितने ही सैनिको को कुचलते, तीव्र गति से युधिप्टर की ग्रोर बढ़ने लगे, घोडे हवा से वाते कर रहे थे इतनी तीव्र गति से द्रोण के रथ को अपनी ओर आते देख कर युधिष्टिर ने बाज़ के पर लगे हुए तीक्ष्ण वाणो की वर्षा उस ओर प्रारम्भ कर दी, ताकि द्रोण की गति अवरुद्ध हो सके ! परन्तु वाणों की वर्षा भी द्रोण की गति को न रोक पाई । उन्होने क्रुद्ध होकर युधिष्टिर के वाणो के उत्तर मे ऐसे दाण चलाए कि युधिष्टिर को यात्म रक्षा कर सकना दुर्लभ हो गया । एक वाण ऐसा लगा कि धर्मराज का धनुष टूट गया । युधिष्टिर सम्भले और दूसरा धनुप लेकर युद्ध करे, इस से पहले ही द्रोणाचार्य वडे वेग से