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युधिष्ठिर को जीवित पकड़ने की चेष्टा
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प्रभाव ने दोनो तलवारे ऐसी चमक रही थी मानो तडित रेखा प्राकाश के वजाये पृथ्वी पर पाकर बार बार चमक रही हो।
शल्य ने अपने भानजे नकुल को अपने मुकाबले पर आते देख कर कहा-"नकुल , मैं नहीं चाहता कि तुम्हारा बध मेरे हाथों हो। मरना ही है तो यह सेवा किसी और कौरव वीर से जाकर लो।"
नकुल को मामा की बात बडी कड़वी लगी, गरज कर बोला -"मुझे लगता है कि आप को अपने भांजे के हाथो ही अपनी मुक्ति करानी है, अब आपका मस्तिष्क फिर गया है । मरते हुए लोगो की आखे फिरती हैं पर आपका मस्तिष्क भी फिर गया है, इसलिए सिंह को ठोकर मार कर जगा रहे-हो।"
शल्य को बड़ा क्रोध आया. कहा-"रे मूर्ख ! मुझे क्रोध दिला कर अपनी मृत्यु को निमन्त्रिक कर रहा है । तो ले अपने कर्मो का फल भोग।" । ~और भीषण बाण वर्षा करदी। बाणो से अधिक चोट लगी नकुल को मामा के शब्दो . उसमे दांत भीच कर ऐसे तीक्ष्ण बाण चनाए कि मामा के रथ की ध्वजा धुल मे आ रही, रथ की छतरी घोड़ो के पैरो मे लुढकने लगा और शल्य का रथ टूट फूट गया । मामा वडे चिन्तित हुए । वे हतप्रभ होकर कुछ करने की सोच ही रहे थ, कि नकुल ने विजय का शख वजा दिया, शत्य हाथ मलत रह गए।
कृपाचार्य का पाला पड़ा धृष्टकेतु से । दानो मे भीषण युद्ध हुपा, पर कृपाचार्य के सामने धप्टकेतु अधिक देरि न ठहर सका। पायाकार कृतवर्मा तो दो भयानक जगलो पशयो को भाति एक दूसरे पर झपट रहे थे । और उधर विराट राज कर्ण से भिड़े थे। कर्ण को तो अपने पौरुष व रणकौशल पर अभिमान था, पर विराट राज के मुकाबले पर आकर उसे ज्ञात हो गया कि किसी वीर योद्धा का रण भूमि मे आकर परास्त करना हसी खेल नहीं है।
अभिमन्यु अर्जुन का ही दूसरा रूप है। वह जिधर जाता है, अजुन को भाति अपना पराक्रम दिखा कर शत्रुओ को चकित कर देता है। बल्कि यद्ध के दस दिन से हो उसका इतना दव दवा वठ गया है कि जब कौरव सैनिक उस बालक के रथ को प्राते देखत है तो चीख चीख कर कहने लगते हैं-"अरे अर्जुन पुत्र अभिमन्यु या