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, जैन महाभारत
जलाती हुई फैलती है, ठीक उसी प्रकार पाण्डव सेना को भस्म करते हए आचार्य द्रोण चक्कर काट रहे थे । उनके बाण जिस अभागे पर पड जाते, वही त्राहिमान त्राहिमान करता हुआ; यमलोक सिधार जाता। कितने ही रथ खाली हो गए, और अश्व विना सवार के अनाथ की भाति भयभीत होकर भागने लगे। ऐसा भयकर सग्राम हो रहा था कि किसी को यह भी पता नही चल रहा था कि द्रोण है किस मोरचे पर । वे विद्युत गति से अपना स्थान बदल रहे थे, कभी इस ओर तो कभी उस ओर, कभी इस दिशा मे नारकाट मचाई तो कभी दूसरी दिशा मे जहा देखो द्रोण ही द्रोण दिखाई देते। पाण्डव सैनिकों को भ्रम होने लगा कि कही-द्रोण अनेक शरीर, तो धारण करके नही आ गए।
धृष्टद्युम्न जिस मोरचे पर था, उस पर कौरव महारथियों ने मिलकर आक्रमण कर दिया । और सग्नाम होने लगा और द्रोण तथा कर्ण के भीपण' रूप धारण करके पाण्डव सेना पर यमराज की भाँति टूट पड़ने से प्रोत्साहित होकर कौरव महारथो भीषणं मारकाट मचाने लगे। जैसे उन्हे आशा हो कि वें अब हुए विजयी | कुछ ही देरि बाद पाण्डवो का व्यूह उस मोरचे पर टूट गर्या और पाण्डव तथा कौरव वोरो के बीच द्वन्द्व युद्ध छिड़ गया। माया युद्ध में निपुण शकुनि सहदेव से युद्ध करने लगा भयकर दानव के रूप मे शकुनि टट कर पंडा पर सहदेव ने भी कच्चो गोलिया नही खेली थी। उसने ईंट का जवाब पत्पर से दिया । 'शकुनि के माथे पर पसीना छलक आया और सहदेव की आखें चमकने लगी । तव शकुनि को सन्देह हुआ की कही सहदेव विजय तो नहीं हो जायेगा, उसने सम्पूर्ण साहम बटोर कर आक्रमण किया और दोनो तुरी यरह जूझने लगे। इस भयकर युद्ध मे दोनो के रथ टूट गए। तवं दोनों बीर अपने अपने रथो से गदा लेकर कूद पड़े । दोनो को भारी गदाए टकराने लगी। ऐसी भीपण ध्वनि होती थी मानो दो पहाड सप्राण होकर आपस मे टकरा रहे हो।
__ इधर भीमसेन और विविगति आपस में टकरा रहे थे। भोम- ) मेन ने वाणो को मार से विविंगति के रथ की ध्वजा गिरा दी, फिर सारथि को मार डाला। कुपित होकर विविंशति ने भी भीम को खूब छकाया, कुछ ही देरि मे दोनो के रथ टूट गए और वे तलवार व बाल सम्भाल कर नीचे उतर पाये । सूर्य किरणा क