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* तैतालीसवां परिच्छेद *
Auttttttttta ** दुर्योधन का कुचक्र
444uuuuuut244 द्रोणाचार्य के चले जाने के उपरान्त अन्य कौरव भी उठ कर अपने अपने शिविर की ओर चल दिए, पर दुर्योधन, कर्ण और दुशासन वही बैठे रहे। वे तीनो आपस मे मन्त्रणा करने लगे। यह मन्त्रणा थी युद्ध मे विजय प्राप्त करने के लिए किसी षडयन्त्र की रूप रेखा के सम्बन्ध मे। ...तीनो घुल मिल कर आपस में बात चीत करते रहे और अन्त म दुयोधन गद गद होकर गोला-'तो बस यही ठीक है। क्यो न इसो समय चल कर द्रोणाचार्य से वचन ले लिया जाये।"
___ "हा. हा. आचार्य चाहे तो यह उनके लिए बाये हाथ का खेल है।"-कर्ण ने प्रोत्साहित करते हुए कहा ।
तीनो उठे और द्रोणाचार्य के शिविर की ओर चल पड़े।
आचार्य सोने की तैयारी कर रहे थे कि तीनो महारथियो को सामने देख कर उन्हे पाश्चर्य हुआ। विस्मित होकर पूछा - "क्या 'कोई विशेष बात है ?" ..'हां आचार्य जी , एक विनती लेकर आये हैं।"- दुर्योधन
द्रोणाचार्य समझ गए कि कोई विशेष बात है, तीनो को बैठा कर स्वय भी सावधान होकर बैठ गए और धीरे से पूछा-"क्या वात है ?"
ने बैठते हुए कहा।