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जैन महाभारत
सन्देह था। मौन की स्वीकृति का लक्षण जानकर सभी कौरव विपुलनाद कर उठे।
उठने से पहले द्रोणाचार्य बोले- "आप जो कार्य मुझे सौंपेंगे, वह मुझे करना ही होगा, पितामह की इच्छा पूर्ण हो जाती तो अच्छा था।"
"क्षत्रिय आगे बढा पग पीछे नहीं हटाया करते-दुर्योधन वोला-युद्ध के लिए आये हैं तो तलवार की धार पर हो हमारा फैसला होगा।"
कर्ण उस अवसर पर चुप न रह सका, बोला- "प्राचार्य जी! अव सन्धि की बाते उठाने से कोई लाभ नहीं हम दुर्योधन की इच्छा से रण क्षेत्र मे आये हैं और उसी की इच्छा से कार्य करना हमारा कर्तव्य है।"
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