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भोम का विछोह
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पितामह की बात सुनते ही पाण्डव तथा कौरव पक्षीय कई राजा गण अपने अपने डेरो की ओर दौडे। नरम गदगदे तकिए लेने के लिए और कुछ ही क्षण बाद वहा अनेक रेश्मी, नरम तथा सुन्दर तकिए गए। चारो ओर से राजागण पितामह के सिरहाने अपना अपना तकिया लगाने के लिए प्राय। पर पितामह ने उन सभी के तकियो को देखकर इकार कर दिया किसी का भी तकिया स्वीकार न किया। प्रत्येक निराश होकर रह गया।
तव पितामह ने अर्जुन से कहा-"बेटा ! मेरा सिर नीचे लटक रहा है, इससे मुझे बड़ा कष्ट हो रहा है। तुम ने शय्या तो दी, पर तकिया नही । कोई उचित सहारा तो सिर के नीचे लगा दो "
पितामह ने यह बात उसी अर्जुन से कही, जिसने अभी अभी प्राणहारी बाणो से पितामह का शरीर बीध डाला था । जो पितामह के वध के लिए कुछ ही देर पहले बडी चतुराई से बाण वर्षा कर रहा था। एक आज्ञाकारी शिष्य तथा पौत्र की भाति अर्जुन ने आज्ञा शिरोधार्य की और अपने तरकश से तीन तेज़ बाण निकाले । आर पितामह के सिर को उनकी नोक पर रख कर उन्हे भूमि पर गहा दिया। इस प्रकार महावली भीष्म पितामह के लिए उपयुक्त
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तकिया बना दिया गया ।
. पितामह प्रसन्न होकर बोले-"बेटा अर्जुन ! तुम्हारी तीक्ष्ण बुद्धि और वीराचित धर्म तथा कर्तव्य का तुम्हारा ज्ञान तुम्हे अपूर्व यश अरजन करने का कारण बनेगा। अन्तिम समय भी तुम मुझे अपनी वीरता की प्रशसा के लिए बाध्य कर रहे हो। मुझे तुम पर
गर्व है।"
राजागण ने विनयपूर्वक निवेदन किया-"पितामह ! इस समय "पका दशा देखकर हम सभी व्यथित हैं और यह सहन कर रहे हकि जब आप जैसे धर्म योद्धा के सामने भी मृत्यु हाथ पसारे खडी
९. हम जसो की क्या विसात है। एक दिन यह अबसर हमारे - सामने भी आना है। ऐसे समय कुछ उपदेश कीजिए।"
"प्रिय वन्धुओ! नेरे प्रति तुम्हारी इतनी श्रद्धा होने का कारण जो है उसे मैं समझता ह। पर मैं वद्ध होने के कारण इतना महान नही कि धर्मोपदेश कर सक। और रणक्षेत्र मे किसी के
राम्या पर पड़े हुए यह सम्भव भी नही, फिर भी आप लोग