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________________ ४६६ जैन महाभारत सारा शरीर छिद गया। उस सयय शांत खडे पितामह को देखकर आकाश मे युद्ध देख रहे देवबानो को बड़ा आश्चर्य हुआ और वे भी पितामह की महानता की श्रद्धापूर्वक प्रशसा करने लगे। कुछ ही देरि मे पितामह का सारा शरीर बिंध गया और वे अपने रथ से लुढक पडे । जैसे पर्वत के गिरने से उस के आश्रित सभी वक्ष आदि दब जाते हैं, इसी प्रकार पितामह का गिरना हुआ कि कौरवो का मान भी ढह गया और वे सभी हा हा कार करने लगे। क्षण भर मे कोहराम मच गया। पितामह का गिरना था कि मन्द मन्द समीर छोटी छोटी वून्दै बरसाने लगी, जैसे आकाश गे उठा हो। चारों ओर शोक छा गया। कौरव रो पड़े और पाण्डव महारथियों ने विजय के शख नाद किए। पितामह गिरे तो पर उन का शरीर पृथ्वी से न लगा, बल्कि अर्जुन के उन बाणों के सहारे ऊपर ही रुका रहा, जो पितामह का शरीर भेद कर दूसरी ओर निकल गए थे उस विलक्षण शस्श्ध्या पर पडे भीष्म जी के शरीर से एक अनूठी अाभा फुट रही थी। अभी तक ' उनके मुख पर शाति विराजमान थी अभी तक उनके ब्रह्मचर्य का तेज अनूठी शोभा दशी रहा था। अभी तक उस महावली का सुर्य समान मुख मण्डल पर बला का तेज था। पितामह के गिरते ही युद्ध बन्द होगया और दोनों ओर क राजागण शूरवीर पितामह के अन्तिम दर्शन करने हेतु दौड पड। पाण्डव और कौरव पक्षी राजागण और पितामह के परिवार के तारागण चारो ओर से उन्हे घेर कर खड़े हो गए। सभी के हाथ जड गए थे। सभी अभिवादन कर रहे थे। सभी गम्भीर थे प्रार आपस में मिले हए इसी प्रकार खडे थे जैसे आकाश में दीप्तिमान चन्द्रमा के चारों ओर उन के परम शिष्य तथा प्रिय पुत्र तारागण । उस समय वे सभी पितामह के चारो ओर खडे अपनी अपनी हादक श्रद्धाजलि अर्पित कर रहे थे। तभी सभी को लक्ष्य करके पितामह वाले-"मेग सिर नीचे लटक रहा है। उसे ऊपर उठाने के लिए कोई सहारा तो लायो। कोई वीर मेरे सिर के नीचे वीरोचित तकिया लगा दे ।"
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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