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जेन महाभारत
भी स्त्री के समान है। नपुसक का सामना है। उन के मस्तिष्क में प्रश्न उठा कि क्या उन जैसे महावलो के लिए नपुसक से लडना उचित है ? क्या अपुरुष पर शस्त्र चलाना क्षत्रियोचित धर्म के अनुसार उचित है ? नही, वे प्रतिज्ञा कर चुके है कि किसी भी नारी शरीर धारी मानव या नपुंसक पर अस्त्र नही उठायेंगे और नपुंसक से लडना उनकी मर्यादा के विरुद्ध है। । परन्तु शिखण्डी को उनके तथा अर्जुन के बीच दीवार बन कर खड़े हुए शिखण्डी की उपस्थिति से पितामह का मुख मण्डल क्रोध के मारे तपते सूर्य की भांति जलने लगा। लगता था मानो अभी अभी उनके नेत्रो से ज्वालाएं निकल पड़ेगी और शिखण्डी ज्वाला वाणों से भस्म हो जायेगा। उनकी आखे लाल अगारो की भाति दहक रही थी। उनका मुख मण्डल अगारे की नाई लाल हो उठा था। उनके हाथो की मुठ्ठियाँ बध गई। और जब. अर्जुन ने तडातड़ वाण वर्षा जारी की, तो पितामह के क्रोध का ठिकाना न रहा। यह क्रोध था शिखण्डी और- अपनी विवशता पर। किन्तु पितामह ने अपने को नियत्रित किया और गम्भीर हो गए। उनका मुख कठोर होगया।
निष्क्रिय खडे देख कर शिखण्डी ने भी पितामह पर वाणों की वर्षा की और अर्जुन तो वाण चला ही रहा था। पितामह शिखण्डी के बाणों का कोई भी प्रतिरोध नहो कर रहे थे। इस से शिखण्डी का साहस और भी बड़ा और वह तीव्र गति से बाण वपा करने लगा। अर्जुन ने भी उस समय तनिक जो कडा करके पितामह के मर्मस्थलों पर वाण मारने प्रारम्भ कर दिए। उस समय पिता. मह पास खड़े दुःशासन को सम्बोधित करते हुए बोले- "देखो यह वान अर्जुन के है, जैसे केकड़ी के बच्चे ही उसके शरीर को विदाण कर डालते हैं. इसी प्रकार अर्जुन ही मेरे शरीर को बीघ रहा है।
उस समय जब कि एक अोर से घडाघड वाण चल रहे थे। और दूसरी ओर पितामह निश्चल. व गांत खडे थे, बल्कि अजुन के बाणों की चोट से भी उनका मुख तनिक भी मलिन नहीं हुआ। यह दृश्य देख कर उस अवसर पर उपस्थित सभी योद्धा आश्चम चकित रह गए। कौरवो ने शोर मचाया-"पितामह ! बाण