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भीष्म का विछोह
को गौरव आधारित था, अर्जुन की गति को रोकने के लिए तयार बड़े थे । ज्यों ही उन्होंने सामने को सेना में भगदड़ मचती देखी, वे बोल उठे "मालूम होता है धनजय आ रहा है ।"
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दुर्योधन, जो अपनी सेना में मचे कोलाहल और भगदड़ से चिन्तित हो उठा था, दौड़ कर पितामह के पास पहुंचा और घबरा कर बोला- "पितामह ! देख रहे हैं हमारी सेना का साहस टूट रहा है, भीमसेन की गदाभो की चोट के सामने हाथी नही ठहर पा रहे और दूसरी ओर न जाने क्यों पदाति, अश्वारोही और रथी सेना मे हाहाकार मच गया है। जाने कौन सहारक आ गया है। जैसे वायु के प्रबल प्रहारो व तूफान के सामने मदोन्मत हाथियो की भाति भूमते मेघ उड़ जाते हैं, हमारे रणेण्मत्त वीर महारथी तक किसी पाण्डव योद्धा के बाणों से उड़े जा रहे हैं। लगता है अर्जुन श्रा गया है । कुछ कीजिए पितामह ! वरना मैं कही का न रहूगा ।"--
दुर्योधन की घबराहट भीष्म पितामह को न सुहाई । वे भय से घृणा प्रकट करते हुए बोले- "इतनी जल्दी तुम घबरा जाते हो, क्यो ? भय किस बात का । रण क्षेत्र में श्राये हैं, हम अपने प्राणों का मोह त्याग कर, फिर चाहे कोई भी क्यों न आये लड़ना ही तो है, कापने से क्या होगा ? जाओ अपना मोर्चा सम्भालो । में
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जानता हूं श्री कृष्ण रथ ला रहे हैं और अर्जुन के बाण प्रलय मचा
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17 पितामह की बात मे एक ललकार थी, डपट भी, दुर्योधन का मह, उतर गया, वह कांपता हुआ अपने स्थान पर चला गया और पितामह ने अपने बाण सम्भाले ।
अर्जुन ने सामने पहुंचते ही एक बाण पितामह के चरणों मे फेंका। पितामह ने अपने चरणों में पड़े बाण को देखा और फिर एक बाण निकाल कर धनुष पर चढाया, ज्यों ही डोरी को उन्हों ने कान तक खीच कर सामने निशाना बांधा, दृष्टि सामने गई, तो वे सन्न रह गए। अंग अंग शिथिल पड़ गया, उत्साह जाता रहा । उन्होने देखा कि सामने है शिखण्डी । वह शिखण्डी, जो
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उनको मृत्यु का साधन वन कर उत्पन्न हुआ है, जिस के लिए द्रुपद तपस्या की थी । यह वही शिखण्डी है जो पुरुष होते हुए
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