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________________ ४६२ जैन महाभारत इधर उधर भागने लगे। कुछ पदाति नौसिखये सैनिक मल मूत्र व्यागने लगे और एक घण्टे की गोलावर्षा से ही कौरव सेना के छक्के छूट गए। कौरवो को अपनी विकट गाडियो को बन्द करना पड़ा और कौरवो की ओर से गोलो का वर्षां बन्द होते ही पाण्डवो की गोला वर्षा बन्द होगई । भीष्म पितामह ने अपनी सेना को आगे बढ़ने का आदेश दिया और पाण्डवो की सेना भी अपने सेनापति का आदेश पाकर आगे बढ़ी। दोनो सेनाए एक दूसरे के निकट पहुंचते ही. परस्पर भिड़ गई। दोनों ओर के महारथी एक दूसरे को परास्त करने के उद्धेश्य से अपने भीषण अस्त्र शस्त्रो का प्रयोग करने लगे। भोमसेन गदा लेकर गजारोही सेना पर टूट पडा। जिस हाथी की सूण्ड पर उसकी गदा पडती, वही चिंघाड मार कर भाग पडता। जिस हाथी पर दो तीन गदारो के प्रहार हो जाते वह पहाड़ की भाति ढह जाता कुछ ही देरि मे कौरवो को गजारोहो सेना मे हा हा कार मच गया। सात्यकि अपने धनुष के जौहर दिखा रहा था और भूरिश्रवा तथा भगदत अपने अपने पराक्रम का प्रदर्शन कर रहे थे। परन्तु अर्जुन का रथ अपने सामने आने वाले वीरों का सहार करता आगे बढ़ रहा था, शिखण्डो तथा अर्जुन के बाणो के सामने कौरवो की सेना का जो भी दल पडता, वही या तो मुकाबला करता करता धाराशायी हो जाता; अथवा पने बाणों की ताबन लाकर भाग खड़ा होता। अर्जुन के साथ शिखण्डी को देख कर ही कौरव वारा का साहस जवाव देजाता, कितने हो सैनिक दुरि से देख कर ही दुम दवा कर भाग पड़ते और जो सामने आते, वे मानो प्राणो के साथ खिलवाड़ करते, मत्यु दान लेने अथवा पराजय का प्रसाद लेने भर को। उस दिन परम प्रतापी धनुर्धारी वीर अर्जुन के साथ शिखन्हा के हो जाने से कौरव सेना में तहलका मच गया और इस वातावरण से लाभ उठाते हए श्री कष्ण रथ को तेजी से भीष्म पितामह का ओर बढाते जाते थे। वे भीष्म जो असंख्य वीर दलों से राक्षत थे और जो तारागण के बीच गौरव पूर्ण ढग पर दीप्तिमान चन्द्रमा के समान चमक रहे थे, जो नौ दिन के युद्ध में कौरवो की नौका । एक मात्र सफल तथा वीर केवट बने हए थे, जिन पर कौरव सना
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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