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भीष्म का विछोह
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घरो को बुलाया और उनसे उस दिन के लिए वायुयानो की व्यवस्था करने को कहा। कुछ ही देर मे आकाश मार्ग से युद्ध करने की योजना पूर्ण हो गई और विकट गाड़ियो को विशेष रूप से मोर्चे पर लगा दिया गया। तभी युधिष्ठिर पहुंचे और धृष्ट द्युम्न से कुछ बाते करने के उपरान्त अर्जुन शिखन्डी को बुला कर उन्होने आदेश दिया - "आज द्रुपद राज की प्रतिज्ञा पूर्ण करने के लिए तुम्हे अर्जुन के ग्रागे रहना है। अर्जुन तुम्हारी आड लेकर भीष्म पितामह पर प्रहार करेगा और तुम स्वय अपने पराक्रम का प्रदर्शन करोगे तभी द्रपद महाराज की प्रतिज्ञा पूर्ण हो सकती है ?"
शिखन्डी ने आदेश का पालन करने का वायदा करते हुए कहा - " मेरे द्वारा पिता जी की प्रतिज्ञा की पूर्ति हो, इस से बढ़ कर और मेरे लिए प्रसन्नता की क्या बात हो सकती है ?"
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वह अर्जुन के आगे होगया, यह देख श्री कृष्ण का मुखमण्डल [र्ण यौवन पर आये सूर्य की भाँति तेजमान हो गया, उन्हे अपार हर्ष हुआ और वे बोले – “पार्थ ! लो श्राज तुम्हारे रास्ते की मेरु पर्वत समान दीवार गिर जायेगी। शर्त यह है कि उस समय तुम्हारे हाथो मे कम्पन्-न्- आये,"
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अर्जुन ने कहा- "मधुसूदन । माता कुन्ती की कोख की सौगन्ध मैं रण क्षेत्र मे अपनी किसी भी भावना को आड़े न आने दूंगा और सम्पूर्ण शक्ति लगा कर युद्ध करूगा ।"
"ज्यों ही युद्ध आरम्भ किए जाने की सूचना के लिए भीष्म पितामह ने रणभेरी बज्रवाई; कौरवो की विकट गाडियां प्राग के गोले बरसाने लगी, जिसके उत्तर मे पाण्डवो की ओर से धुआँधार गोलों की वर्षा होने लगी । सारे रण क्षेत्र मे धूनां श्रौर आग की लपटें उछलने लगी । कुछ देर तक इसी प्रकार शतध्वी चलती रही । भयकर श्रावाजों से घोडे उछलने लगे। हाथियो की चिघाडो का शोर सारे रण में छा गया | ast भयंकर वातावरण हो गया । नभी धृष्टद्युम्न के संकेत पर गधर्वो व विद्याधरी ने एक स किया और आकाश से गोले बरसाये जाने लगे। जिन के कारण ौरव सेना मे कोलाहल मच गया। बहुत से सैनिक आंख फाड़ फाड
आकाश से आते अग्नि गोलो को देखते, कुछ चचल घोड