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जैन महाभारत
दुर्भाग्य का तूफान आता है तो बड़े बड़े विशेषज्ञो द्वारा निर्मित शक्ति शाली वांघ भी रेत के महल की भांति ठह जाते है ।" ..
'वस पितामह ! मेरे कान यह बाते सुनना नहीं चाहते। आप कभी तो मेरी मन चाही बात भी कह दिया करे।"-दुर्योधन ने कहा ।
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। -पितामह ने हसते हए कहा-"वेटा । विजय कौन नही चाहता पराजय की प्राशका से किसका हृदय नही कापता, फिर भी होता वही है जो होना होता है। पराजय किसी की विराट शक्ति से नही, बल्कि उसके विराट शक्ति शाली शुभ कर्मों से होती है।"
दुर्योधन पितामह की बात सुन कर तिलमिला उठा, उसने बात झुटलाने का साहस न कर टालने का प्रयत्न किया, बोला"पितामह ! आप से अधिक शुभ प्रकृति व्यक्ति कौन होगा। आप युद्ध का संचालन करें, फिर आप देखे कि शत्र सेनाएं कितने पाना मे है ?"
पितामह ने एक अट्टाहाम किया और तदुपरान्त अपनी सेना को सावधान करने के लिए भयकर सिंह नाद किया। घाड विचलित होगए और हाथियो ने अपनी सड ऊपर उठा कर अभिवादन किया। . . दूसरी ओर धृष्टद्युम्न ने अपनी सेना की ऐसी व्यूह रचना की जो कि पितामह के व्यूह रचना को तोड सके । युधिष्ठिर बार अर्जुन विशेष रूप से उसकी रचना में सहयोग दे रहे थे और भाम सेन अपने साथियो की पीठ ठोक रहा था। जब सारी सेना की व्यवस्था होगई तो श्री कृष्ण ने अर्जुन को सम्बोधित करते हुए कहा ~~"पार्थ! पितामह की कुशल व्यूह रचना देख रहे हो ? चारा 'ओर विकट गाड़ियां ही विकट गाडिया हैं और उन के महारथी उन के पीछे हैं, उम के वाद है सैनिक और सैनिक टकडिया भी मिला जुली हैं, पग पग पर गजारोही, अश्वारोही पदाति और रथा मैनिको से पाला पड़ेगा. तब कही जाकर पितामह का रथ मिलगा इम प्रकार पितामह का मुकावला तुम इन सहस्त्रों दीवारो काताई कर ही कर सकते हो। और इन दीवारो को तोड़ना महन नहीं है.
अर्जुन ने दात समझते ही अपने सहयोगी गंधर्वो और विद्या