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. भीष्म का विछोह
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सहारे पर बैठे रहना भी उचित नही हैं। यह युद्ध है, कभी भी कोई भी हम से छिन सकता है। हम यहाँ प्राणो का मोह त्याग कर आये हैं, इस लिए किसी व्यक्ति के प्रति मोह भी ठीक नही । मैं तुम मे से प्रत्येक मे अपूर्व शौर्य के साथ अपना पराक्रम दिखाकर अपने हाथ से विजय पताका फहराने को आकाक्षा देखना चाहता हूं। मुझे अनुभव हो रहा है कि आज का युद्ध बडा विकट होगा। इस लिए आज पूरी शक्ति से शत्रु का मुकाबला करने की शपथ लो।"
पितामह की इस चेतावनी के बाद ही कौरव राज की सेना का राष्ट्र गीत रण के बाजे बजाने लगे। संनिको ने दुर्योधन और भीष्म पितामह की जय जयकार की। सभी कौरव पक्षी महारथियो ने शख नाद किए और फिर पितामह के आदेशानुसार व्यूह रचना की जाने लगो। भीष्म पितामह ने उस दिन बड़ी कुशलता से सेना को खडा किया और व्यूह की रक्षा के लिए चारो ओर विकट गाडिया लगा दी गईं। मुख्य द्वारो पर विकट गाडियो के पीछे महारथी खडे किए गए जिनकी रक्षा के लिये सहस्त्रो सैनिको को, जिन मे गजारोही, अश्वारोही पदाति और रथी सभी प्रकार के सैनिक थे, नियुक्त किया गया । स्वय भीष्म पितामह बीच मे थे और उनकी रक्षा के लिए चुने हुए वोर अपनी अपनी सैनिक टुकड़ियों के साथ थे। यह व्यूह बिल्कुल उसी प्रकार था मानो किसी कलाकार ने एक उलझी हुई पहेली की रचना की हो, जिसमे प्रवेश करके उसके केन्द्र तक पहुचना असम्भव प्रतीत होता हो ।
सेना की अपूर्व व्यवस्था देख कर दुर्योधन जो सब से पीछे था, पितामह के पास पहुंचा और गदगद स्वर मे बोला-"पितामह आज आप ने जो कौशल दर्शाया है, उस से मुझे आशा हो गई कि अव आप के पराक्रम से शत्र सेना की पराजय निकट आ गई है। "मुझ अव अपने उन शब्दो पर लज्जा पा रही है. जो मैंने आप को 'उदासीन समझ कर प्रयोग किए थे । आप मुझे क्षमा करदे ।"
पितामह मुस्करा उठे, बोले-"आज तुम सन्तुष्ट हो, यह जान कर मुझे अपार हर्ष होरहा है। परन्त तम यह मत भूलो कि मैने जव से रणभूमि मे पग रक्खा है अपनी शक्ति भर रण कोशल दर्शाया है । मैंने अपनी बुद्धि से सर्वोत्तम व्यूह रचनाएं की हैं परन्तु जव