________________
* बैतालीसवां परिच्छेद *
*** भीष्म का विछोह **
जागृत हुए
रथ तैयार हा में कोलाहल ।
ज्यो ही पृथ्वी पर से अधकार का घूघट उठा और सूर्य मुख दृष्टिगोचर हुआ कुरुक्षेत्र के एक सिरे पर पडी छावनियो मे सोये सिंह जागृत हुए । बिगुल बज उठे। वीरो ने कमरकसी। रण की पोशाकें पहन ली गईं। रथ तैयार हो गए और हाथियो पर होदे रख दिए गए। दोनो ओर की सेनाप्रो मे कोलाहल होने लगा। घोडे हिनहिनाए और हाथियो ने चिंघाड मारनी आरम्भ कर दी। .. ... . और कुछ ही देरि मे दोनो ओर की सेनाए दूसग विगुल बजते ही छावनियों से निकल कर अस्त्र शस्त्रो से लैस होकर मैदान मे आ डटी। अश्वारोही सेना अश्वो पर, गजारोही हाथियो पर और पदाति भाले, वी. खडग और गदाए लिए आ डटी। भीष्म पितामह ने कौरव सेना को खड़ा किया और एक अभूत पूर्व गर्जना के साथ पाहवाहन क्यिा-कौरव गज के बहादुर साथियो ना दिन तक युद्ध मे डटे रह कर तुमने अपनी वीरता की धाक जमा दा । नो दिन तक जिस साहस और रण कौशल का तुमने परिचय दिया, उसके लिए तुम बधाई के पात्र हो परन्तु अव यह स्पष्ट हो गया है कि प्रत्येक २४ घण्टे बाद यूद्ध उत्तरोतर भयकर होता जा रहा है। इस लिए प्रत्येक क्षण तम मे उत्साह और वीरता की वृद्धि का
आवश्यकता है। किसी एक वीर के सहारे पर ही युद्ध की हार जात निर्भर रहना ठीक नही है किसी एक के रण कौशल को युद्ध का निर्णायक समझ बैठना भी भूल है और किसी विशेष व्यक्ति के