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जरासिन्ध वध
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भयकर युद्ध चल रहा था, प्रत्येक योद्धा अपने अपने रणकौशल से विरोधी को परास्त करने की चेष्टा मे था .। समुद्र विजय ने राजा द्रुम को, स्तिमित ने भद्र राजा को, और अक्षोम्य ने वसु सेन नृप को यमलोक पहुचा दिया। इसी प्रकार कितने ही शूरवीर संग्राम में मारे गए। महाद्म, कुन्तिभोज, श्री देव आदि नप यम लोक सिधार गए। इतने मे सूर्य अस्त हो गया और दोनो पक्ष अपने अपने डेरो मे चले गए। रात्रि भर सभी ने विश्राम किया।
प्रात होते ही हिर राय नाम नृप जरासिन्ध की ओर से अपनी सेना को लेकर रण क्षेत्र में आ गया, और आते ही भयकर वाण वर्षा की, परन्तु अर्जुन ने उसके वाणों को बीच ही मे काट गिराया। हिर राय नाम रह रह कर सिंह की भाति गरजता और विकट रूप से वाण वर्षा करता रहा, तव भीम ने आगे बढ कर अपनी गदा से उसके रथ को चूर चूर कर दिया और समुद्र विजय के शुभ जयसन ने अर्जुन के पास अपना रथ खड़ा करके हिर राय नाम की सेना पर बाण वर्षा प्रारम्भ कर दी । उसके तीक्ष्ण वाणो से गिरते सैनिको को देख कर हिरराय नाम ने गरज कर कहा-- ,
ओ मूर्ख जय सैन ! भाग जा, क्यो 'व्यर्थ मे प्राण गवाता है। जय सैन ने क्रोधित हो कर एक ऐसा वाण मारा कि हिरराय नाम का सारथी लुढक पडा। क्रुद्ध हो हिरराय नाम ने जय सैन पर वाणो की बौछार कर दी और जयसन अपने सारथी सहित मारा गया।
अपने भाई को गिरते देख महाजय दौड़ कर आ गया और हिरराय नाम पर टूट पडा, परन्तु उमको हिरराय नाम के सामने
एक न चली, कुछ ही देरी मे वह भी मारा गया । - यह दृश्य देख कर अनावृष्टि पर कोप छा गया और मोर्चों पर
या उटा, पाते ही एक ऐसा वाण मारा कि जिसने उस धनुष को ही - तोड़ दिया, जिसके द्वारा जयसन और महाजय का वध किया गया
था। और गरज गार वोला-हिरराय नाम इन दो मारों के रक्त 7 का बदला तुझ मे लिया जायेगा। भागने का प्रयत्न न करना।
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