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________________ जैन महाभारत 1 श्री कृष्ण व्याकुल हो गए, उन्होने तुरन्त अपनी पताका फहराई, पांचजन्य बजाया और शीघ्र हो योद्धाम्रो को ललकार कर एकत्रित किया, उन्हे प्रेरणा दी, अपने शब्दो से उत्साह प्रदान किया और उनके सम्मान की चुनौती देते हुए एक साथ मिल कर जरासिन्ध फ्री सेना पर टूट पड़े । चारो ओर से जरासिन्ध और उसके व्यूह को घेर लिया ।। ३४ 1 यहा नेमि और अर्जुन ललकार कर शत्रु सेना पर टूट पड 1 अनावृष्टि, बलाहक योद्धा दे उनका साथ दिया और देखते ही, देखते जरासन्ध का चक्रव्यूह तोड डाला । इन वीरो का रणकौशल देखकर शत्रु सेना आश्चर्य चकित रह गई, उसके पैर उखड़ने लगे । तव रुक्मिन और रुधिर जरासिन्ध की ओर से मोर्चे पर आ डटे, इस ओर से अर्जुन और अरिष्ट नेमि जी थे। अरिष्ट नेमि जी के शस्त्र के प्रहार से रुक्मिन और रुधिर दोनो ही घबराए अर्जुन के बाणो ने उन्हें होश न लेने दिया, तब उनके पाव उखडते देख सात नरेश जरासिन्ध की ओर से लडने के लिए आ गए । महा म जी ने तुरन्त उनके प्रायुध गिरा दिए। " î G 7 अपने पक्ष की हार होते देख जरासिन्ध के सहयोगी सन्तय नृप ने महानेमि जी पर एक भयकर ( विद्यामयी) शक्ति छोडी जिस के प्रभाव से यादव कम्पित हो गए। तब मातली ने ग्रष्टिनेमि जी को वताया कि रावण भी यही प्रभेद्य शक्ति रखता था जो उसने धरणेन्द्र से प्राप्त की थी। इस राजा ने भी उसी शक्ति को बलि से प्राप्त किया है | इसको काटने का वज्र ही एक मात्र साधन है ।. 1 तब अरिष्टनेमि जी ने महा नेमि को वज्र बाण दिया, उसे वाण के छूटते ही उस शक्ति का सहार हो गया वह व्यर्थ हो गई, रुक्मी आयुध लेकर सक्रन्तय नृप के साथ आ मिला और ग्राठ नरेशो ने अपनी सेनाओ सहित मोर्चा जमाया। कौमुदी गदा श्रीर अनल वाण से नेमि जी ने रुक्मी को मैदान से भगा दिया। कुछ ही देरी मे अरिष्ट नेमि जी ने अनेक प्रकार के दिव्य शक्तिवान् ग्रस्त्रो का प्रयोग किया जिन से ग्राठो नरेशो के पाँव उखड गए ' और वे भागते ही नज़र आये । · 1 "
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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