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जैन महाभारत
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- "धनजय ! तुम पितामह का मोह करते हो। तुम प्रवश्य ही उनके हाथो पाण्डव सेना का नाश करादोगे । छोड़ दो मुझे। मैं अपने चाबुक से गंगानन्दन को यमलोक पहुंचा दूंगा। तुम कुछ नही कर सकोगे ।"
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तब अर्जुन दौड़ कर उनके सामने जा खड़े हुए और बोले" आप ने तो युद्ध न करने की प्रतिज्ञा की है । अपनी प्रतिज्ञा को क्यों भग करते हैं लोक आपको मिथ्यावादी कहेंगे ।"
"तुम भी तो अपनी प्रतीज्ञा भंग कर रहे हो ? तुम ने भी तो पितामह का वध करने की प्रतिज्ञा की थी। पर तुम तो पितामह का आदर करते हो उन पर तुम से वाण चलाये ही नही जाते । तो क्या में पाण्डव-मेना जा सहार देखता रहू । क्यो रोकते हो मुझे । तुम जैसे व्यक्ति का सारथि बन कर मुझे मिथ्यावादी बनना न पडे गा तो क्या बनना पड़ेगा। तुम सभी की नाक कटादोगे ।" - श्री कृष्ण ने गरज कर कहा ।
" गोविन्द ! मेरी भूल क्षमा करदे। मैं विश्वास दिलाता हूं कि पितामह का वध करूंगा। मैं वही करूंगा जो आप चाहेगे। लौट चलिए ।" - श्रर्जुन ने ग्राग्ग्रह करते हुए कहा ।
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- श्री कृष्ण तो चाहते ही यह थे कि अर्जुन को प्रवेश आये । वे अपनी प्रतिज्ञा तोड़ना नही चाहते थे अर्जुन को प्रोत्साहित करके वे शान्त हो गए ।
जब अर्जुन ने बार बार कहा तो श्री कृष्ण लौट गए और रथ पर अपना स्थान ग्रहण करते हुए बोले - " भीष्म इस समय तुम्हारे पितामह नही वरन शत्रु हैं। वे तुम्हारा नाश कर रहे हैं। चलायो वाण "
पितामह ने आवेश मे ग्राकर दोनो पर ही वाण वर्षा आरम्भ कर दी। और साथ ही दूसरे पाण्डव पक्षीय महारथियों और वीरो पर भी बाण चलाते रहे। सैकड़ो वीर पृथ्वी पर लुढ़क गए। अर्जुन ने अपनी भी बहुत की । सम्पूर्ण शक्ति लगा कर वह बाण चलाता रहा। परन्तु भीष्म जो मध्यान्ह के समय चमकते सूर्य की भाति हो रहे थे उनकी ग्रोर पाण्डव सेना देख भी नही पाती थी सैकडो वीर मारे गए। चोटी को भाति पाण्डव सैनिकों को भीष्म जी
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