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नौवा दिन
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• इस प्रकार घुमा फिरा कर घोड़े हांके, कि भीष्म जी के बाण व्यर्थ समय घोडे हाकने की अद्भुत
हो गए, वास्तव मे श्री कृष्ण ने उस कला का प्रदर्शन किया ।
परन्तु अर्जुन की ओर से वैसा ही रण कौशल न दिखाया जाता देख श्री कृष्ण क्षुब्ध होगए। भीष्म जी इधर अर्जुन को पीड़ित कर रहे थे तो दूसरी ओर युधिष्ठर की विशाल वाहिनी के महारथियो को मार रहे थे । अर्जुन की गति मे कोई ऐसी बात नही थी कि श्रीकृष्ण को सन्तोष हो सकता । पितामह प्रलय सी मचाते जा रहे थे और अर्जुन मन्द गति से बाण चला रहा था। श्री कृष्ण से यह न देखा गया। बार बार अर्जुन को ललकारा - "क्या कर रहे हो धनजय ? तुम्हारा यह रण कौशल क्या हुआ ? " पर अर्जुन को गरमी न आयी वह उसी प्रकार लड़ता रहा । तब रोष पूर्वक कृष्ण बोले - "पार्थ ! भीष्म जी को रोको। तुम्हे क्या होगया है ?"
अर्जुन की ओर से फिर भी ऐसा कुछ नही हुआ, जिससे भीष्म जी की गति रुक सकती । तब आवेश मे आकर श्री कृष्ण घोडों की रास छोड कर रथ से कूद पड़ े और सिंह के समान गरजते हुए चाबुक होकर भीष्म जी की ओर दौडे। उनके पैरों की धमक से मानो पृथ्वी फटने सी लगी उनकी आखे क्रोध के मारे लाल हो रही थी । उस समय कौरव सेना मे कोलाहाल मच गया - "अरे कृष्ण आये, कृष्ण आयें। बचाओ भीष्म जी को ।" - की प्रावाज उठने लगी ।
श्री कृष्ण रेशमी पिताम्बर धारण किये हुए थे। उस से उन का नील मणि के समान श्याम सुन्दर शरीर विद्युल्लता से सुशोभित श्याम मेघ के समान प्रतीत होता था । जिस प्रकार सिंह हाथो पर टूट पड़ता है, इसी प्रकार श्री कृष्ण गर्जना करते हुए भीष्म जी की ओर लपके। कमल नयन श्री कृष्ण को अपनी ओर आते देख पितामह ने प्रसन्नता प्रगट करते हुए कहा- "गोबिन्द ! श्राईये प्राईये, आपका स्वागत है । आज श्राप रण मे उतर रहे हैं अहोभाग्य ।"
तभी अर्जुन ने पीछे से आकर श्री कृष्ण को अपनी भुजाओ मे भर लिया और पीछे की ओर खीचने लगा। परन्तु श्रीकृष्ण भागे हो बढते रहे, वे अर्जुन को भी घसीट ले गए। कहते जाते थे