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जैन महाभारत
हाथियो सहित नष्ट हो गए।
पाण्डवो की सेना इस भीषण सहार से प्रार्तनाद करती हुई भागने लगी । यह देख कर श्री कृष्ण ने अपना रथ रोक कर कहा" कुन्ती नन्दन | तुम जिसकी प्रतिक्षा मे थे, वह अब समय आ गया है । इस समय तुम यदि माह ग्रस्त नही तो भौष्म जी पर भीष्ण वार करो। तुम ने विराट नगर मे सजय के सामने कहा था ना कि मैं भीष्म द्रोणादि कौरव महारथियों को उन के अनुयायिो सहित मार डालूंगा, लो अब अपना वह कथन पूर्ण कर दिखाओ तुम क्षात्र धर्म का पालन कर के अव युद्ध मे अपना पूर्व कौशल दिखलाओ । वरना तुम्हारी सेना परास्त हो जायेगी ।
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श्री कृष्ण की वात सुन कर अर्जुन ने कहा- "मधुसूदन ! जैसी आपकी आज्ञा । अच्छा आप मेरे रथ को पितामह की ओर ले चलिए । मैं अजेय भीष्म जो को अभी ही पृथ्वी पर गिरा दूगा !”
अर्जुन ने यह शब्द कहे तो पर उसके शब्दो में उत्साह नहीं था उसने बेमन से कहा था। जैसे विवश होकर कह रहा है। सफेद घोडो वाले रथ को श्री कृष्ण ने भोष्म जी की ओर हाक दिया। अर्जुन को उस ओर जाते देख युधिष्ठिर की विशाल वाहिनी पुनः लौट प्राई । पर ज्यो ही अर्जुन सामने पहुंचा. भोग्म जी ने वाणों की तीव्र गति से वर्षा की और अर्जुन को सारथि तथा घोडो सहित वाणों से ढक दिया । इतने वाण चलाये कि अर्जुन रथ सहित इसी प्रकार छुप गया, जैसे बादलो मे भास्कर छप जाता है । परन्तु श्री कृष्ण तनिक भी नही घबराये वे वाण वर्षा मे ही अपने रथ को हांकते रहे। और अर्जुन को डाटते हुए वोले - "क्या कर रहे हो
पार्थ ?"
अर्जुन ने अपना दिव्य धनुष उठा कर पैने वाण चला कर भीष्म जी का धनुष काट कर गिरा दिया तव उन्होने तत्काल दूसरा धनुष उठाया, पर अर्जुन ने उसे भो काट डाला । इस कौशल को देख कर भोष्म जी कहने लगे - "वाह महा वाहू. श्रर्जुन ! शावाश कुन्ती नन्दन शाबाश ।" श्रीर दूसरा धनुष सम्भाल कर अर्जुन पर वाणों की । झड़ी लगादी पर उस समय श्री कृष्ण ने कुछ
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