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नौवां दिन
पर जा डटे। उनकी सारी सेना एक साथ युधिष्ठिर पर टूट पडी। परन्तु धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने वाणो के प्रबल वेग ने शल्य की सेना को रोक दिया और उनकी छाती पर दस वाण मारे यदि मजबूत कबच न होता तो शल्य यमलोक सिधार गए होते। पर वे वच गए और दोनो ओर से भीपण युद्ध होने लगा नकुल और सहदेव भी उन के मुकाबले पर आगए।
अब दिन अपने अन्तिम अध्याय मे प्रवेश करने लगा। और गगानन्दन भीष्म जी ने बडे वेग से पाण्डवो पर आक्रमण किया। ताकि वे अपने वचनानुसार पाण्डवो की सेना को नष्ट करके दुर्योधन को सन्तुष्ट कर सके। उन्हो ने वारह बाण भीम पर, नौ सायकि पर, तीन नकुल पर, सात सहदेव पर और बारह युधिष्ठिर पर वरसाये। और वडा ही भयकर सिंहनाद किया। पाण्डव वीर वडे ही पीडित हुए और कुपित होकर उन्होन पितामह पर बाण वर्मा करदी । नकुल ने बारह, सात्यकि ने तीन, धृष्टद्युम्न ने सत्तर, भीमसेन ने सात और विष्ठिर ने वारह वाणो से पितामह को घायल कर दिया । पितामह को सकट में मे आया देख द्रोणाचार्य ने इन वीरो को अपने वाणो का निशाना बनाया। और सात्यकि व भीमसेन को पांच पांच वाण लगे। तभी उन के तीन तीन वाण द्रोणाचार्य को चोट पहुंचाने में सफल हो गए।
इस के बाद पाण्डवो के महारथियो ने पुन. चारो ओर से पितामह को घेर लिया। परन्तु गगानन्दन ने उस समय वडे ही अद्भुत पगत्रम में काम लिया। उनकी प्रत्यचा की बिजली की कडक के समान व्ङ्कार सुन कर सव प्राणी काप उठे। वे बाणो का तूफान लाते हा पाण्डव सेना को विध्वस करने लगे। सहस्त्रो सैनिक यम लोक निधार गए। उन के वाण जिसे लगते, उसी के कवच को चोन्ने हर गरीर मे प्रवेश कर जाते और एक चीत्कार निकलती,
और सैनिक के प्राण पखेरू उड जाते । सैकड़ो रथ, हाथी और घोडे मनवान हो गए। उन के अमोघ वाणो की वर्षा से पाण्डव सेना में हर मत्र गया और उस समय तो सर्वत्र घबराहट फैल गई द्रदि,कायी, और करुद देश के चौदह हजार महारथी जो रण
देने को तैयार रहते थे, परन्तु पीछे पग रखना उन के स्वभाव कही प्रतिकूल था, भीष्म जी के बाणो से अपने रथ, घोडो और..
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