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________________ ८४४ जैन महाभारत रहना दूभर हो गया। पताकाओ की धज्जियां उडने लगीं। सैनिक हाथियो पर से नीचे लुढक गए और किसी का तरकश उड गया तो किसी का मुकुट। कोई रथ ही भूमि पर लुढ़कने लगा। यह दशा देखक र द्रोणाचार्य ने शैलास्त्र छोडा । जिससे वायु रुक गई और सब दिशाए स्वच्छ हो गई। परन्तु पाण्डु पुत्र अर्जुन के सामने टिके रहने का साहस भिगर्त राज व उसके पुत्र मे न रहा। उनसे भागते ही वना। उधर सूर्य अपनी मजिल के अर्व भाग को पूरा करके सर पर पहुंच गया। मध्यान्ह हो गया। दुर्योधन और उसके पक्ष के वीरो ने गगानन्दन भीष्म जी को पुकारा !-"पितामह ! अर्जुन के प्राणहारी वाणो से रक्षा करो वरना कौरव सेना उसके पैने वाणो से नष्ट हो जायेगी।" पितामह ने अपने तीक्ष्ण बाण सम्भाले और टूट पडे पाण्डवसेना पर। जैसे दावानल सूखे बन को नष्ट करता है, उसी प्रकार गगानन्दन के वाण पाण्डव-सेना का सहार करने लगे। सैकडो सैनिक मौत के घाट उतर गए। तव धृष्ट द्युम्न, शिखण्डी, विराट और द्र पद भीष्म जी के सामने आये और वाण वर्षा करने लगे। परन्तु पितामह ने धृष्ट घुम्न, विराट और द्रपद आदि सभी महारथियों को घायल कर दिया। वाण खाकर उनका पौरुष भयकर रूप से प्रगट हुआ और शिखण्डी जिस पर कि पितामह ने वाण नही चलाए थे, कुपित होकर उन पर टूट पड़ा। साथ दे रहे थे अन्य द्रुपद व विराट आदि महारथी। पितामह भी घायल हो गए। परन्तु वे अपने वाणो से शिखण्डी के अतिरिक्त अन्य सभी को पीडित करत रहे। उस समय भीमसेन, सात्यकि यादि भी मुकावले पर आगए। यह देख कौरव महारथी भी जा भिडे । फिर तो बड़ा ही घमासान युद्ध होने लगा। पदाति से पदाति, गजारोही से गजारोही हा और रथी से रथी भिड़ गया था। भालो, तलवारों, कटारों, गदाग्री और धनपो से वार हो रहे थे। रक्त की धाराए वह निकली थी। वीरों के शवो पर रथ दौड रहे थे। गदारो के टकराने से विजला टूटने सा शब्द होता था। दूसरी ओर अर्जुन के मुकावले पर भिगर्त राज के महारषा
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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