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________________ नौवा दिन ४४५ आ डटे थे। द्रोणाचार्य तो अपनी पूर्ण शक्ति से युद्ध कर ही रहे थे परन्तु भिगर्त्त राज के महारथियो के एक साथ टूट पडने से युद्ध मे और गरमी आ गयी। अर्जुन ने उस समय कुछ दिव्यास्त्र प्रयोग किए जिनके सामने रुक सकना भिगर्त महारथियो क बस की बात नही थी। यदि उनकी रक्षा के लिये द्रोणाचार्य न होते तो कदाचित वे सभी यमलोक सिधार जाते । पर आचार्य की कृपा से कुछ की जान बच गई और वे रण छोडकर भाग निकले। कितने योद्धा तो अपने हाथियों, घोडो और रथो पर से कुद कर भाग गए और हाथी, घोड और रथ इधर उधर भागने लगे। कौरव-सैनिको मे चिल्लयो मच गई। यह देखकर दुर्योधन तत्काल भीष्म जी के पास पहुचा और घबरा कर बोला-"पितामह ! अर्जुन हमारी सेना को डस रहा है। महारथी भाग रहे हैं।" पितामह तुरन्त उस ओर चले । दुर्योधन ने अपनी सेना को उनके पीछे लगा दिया। परन्तु सात्यकि, द्रपद, विराट आदि भी अर्जुन की रक्षा मे लग गए । गगा नन्दन ने अपने बाणो से पाण्डवो का सेना को आच्छादित करना आरम्भ कर दिया। सात्यकि कृतवर्मा से भिड गया और अपने कुछ ही वाणो से उसे बीध डाला फिर कौरव सेना के बीच जाकर यद्धा करने लगा। राजा द्र पद ने द्रोणाचार्य को घेर लिया और स्वय उन्हे तथा उनके सारथि को बुरी तरह घायल कर दिया। भीम सेन बाल्हीक को घेरा हुआ था । उसने कुछ ही देर मे उनको बीध डाला और विजय की सूचना के रूप में बड़ा ही उत्साहपूर्ण सिंह नाद किया। चित्रसेन ने यद्यपि अभिमन्यु को घायल कर दिया तथापि वह रण मे डटा रहा और उ चित्रसेन को उसने घायल कर दिया ओर नौ बाणो से उसके चारों घोडो को मार गिराया। . प्राचार्य द्रोण, द्रुपद के बाणो से हार्दिक रूप से भी घायल हुए थे, अतं उनका क्रोध उवल पडा और वे अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा कर युद्ध करने लगे। 5 पद का सारथि और उसके घोड उन की कोपाग्नि मे भस्म हो गये। और अत्यन्त व्याथित होकर द्रुपद को रण भूमि छोडनी पडी। दूसरी ओर भीमसेन ने राजा वाल्हीक क घोडों और सारथि को मारकर उसके रथ को भी नष्ट कर काला। इस लिये वे तुरन्त ही लक्ष्मण के रथ पर चढ गए। सात्यकि
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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