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जैन महाभारत
के नेतृत्व मे कौरव-बीर अाक्रमणभास्त्र से वरफ गिरानी आरम्भ करदी
र माया अस्त्र व्यर्थ हो गए। तब धवरा दोनो ओर से युद्ध य
ग स्थल से छोड कर भाग पडा। अभिमन्यु दूसरे की ओर दौडकर .
रहा, पर उस ने पीछे घूम कर भी न देखा। वीरो के आगे वढने,
आय घोष करने लगी। और अभिमन्यु उस की साथी गोर की ध्वनि । आये। गदा
' पडा। अलम्बुष के भागने से कौरव सेना मे भय छा
"इस लिए वह अभिमन्यु के प्रहार को क्या सहन करती। गया । संनिक भागने लगे। चारो ओर भागो-भागो।" का दिन होने लगा। - अपनी सेना को भागते देख कर भीष्म जी अपने साथी महारथियो सहित बालक अभिमन्यु से जा भिडे । परन्तु वीर बालक ने भीष्म जी का वीरोचित स्वागत किया और हस कर बोला-'आईये दादा जी । आप का रण कौशल सर्व विख्यात है। मैं भी तो आप के पराक्रम को देखू ।"-और उस ने उस पर बाण वर्षा प्रारम्भ कर दी कुछ ही देरि मे अपने पिता व मामा सदृश पराक्रम दिखा दिया। भीष्म जी ने उस के पराक्रम का समुचित उत्तर तो दिया। पर अभिमन्यु का वे कुछ न विगाड सके। तभी अर्जुन अपने पुत्र की रक्षा के लिए कौरवो का सहार करता हुआ उधर आ निकला। भीष्म जी की रक्षा के लिए कौरव महारथी जुट गए और अर्जुन को सहायता के लिए पाण्डव पक्षोय महारथी प्रागए।
कृपाचार्य ने अर्जुन पर बाण वर्षा को, जब कि अर्जुन भीम जी के वाणो को वीच ही मे तोड रहा था और कृपाचार्य के बाणों से भी अपनी रक्षा कर रहा था। सात्यकि तुरन्त ही कृपाचार्य पर टूट पड़ा। और अपने कई बाणो से उस ने कृपाचार्य को घायल कर दिया। ज्यो ही घायल होकर कृपाचार्य रथ के पिछले भाग की पोर झके सात्यकि अश्वस्थामा से जा भिड गया। पर अश्वस्थामा ने अपनी चतुरता से उस के धनुप के दो टुकडे कर दिये। परन्तु सात्यकि ने तुरन्त ही दूसरा धनुष सम्भाला और साठ बाण अश्व. स्थामा पर चलाये। जिन्होने उसकी छाती और भुजाओ पर चाट की। इस से घायल होकर अश्वस्थामा को मी आ गई और अपना ध्वजा के डण्डे का सहारा लेकर अपने रथ के पिछले भाग में वह गया।