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नौवा दिन
पहुचा दो। हम सब भीष्म पितामह शीघ्र ही सात्यकि के समीप कि उसे घायल कर पृथ्वी
V
को घेरते हैं ।
पर
दुर्योधन की आज्ञा पाकर अलम्बुष वर्षात्यकि की ध्वजा काट घोर गर्जना करता हुग्रा अभिमन्यु की ओर भी आच्छादित कर सुन कर पाण्डवो की सेना मे खलबली मच गई। कर द्रोणाचार्य अपने को सम्भाल ही न पाये। अपनी गर्जना से पाण्ड सात्यकी को मन्यु के साथ वाली सेना को कापते देख अलम्बुष पहले उसे डाला पडा । उस के भोषण आक्रमण को पाण्डव सेना सहन न कर सैनिक तितर बितर हो गए। पर ज्यो ही वह द्रौपदी पुत्रो के सार पहुंचा, उसे जबरदस्त सग्राम का सामना करना पडा । पाचो द्रौपदो पुत्र उस पर टूट पड़े और उन के बाणो से उसका कबच कट गया । वह घायल होगया और उसे एक बार ऐसा बाण लगा कि वह अचेत हो गया पर कुछ ही देर मे चेतना लौट आई और श्रमर्ष पूर्वक उसने उन पाँचो पर भीषण आक्रमण कर दिया । अब की बार आक्रमण का मुकावला द्रौपदी पुत्र न कर पाये। उन के घोड और सारथी मारे गए । निकट था कि वे भी मारे जाते, कि तत्काल अभिमन्यु वहाँ पहुच गया ! फिर तो दोनों ही एक दूसरे के लिए प्रलयाग्नि की भांति हो गए। भयकर टक्कर हुई ।
अभिमन्यु के मारे बाणो ने उस के नाको दम कर दिया । उसके मर्मस्थलो पर बाण घुस गए। जिस के उत्तर मे उस राक्षस ने भी भथकर बाण वर्षा की जब इस से भा कुछ न हुआ तो उस ने माया अस्त्र प्रयोग किए। एक ऐसा अस्त्र चलाया कि चारो ओर अधकार ही अधकार फैल गया । पाण्डव सनिको को न तो अभिमन्यु ही दिखाई देता था और न अपने अथवा शत्रु पक्ष के सैनिक ही सुकाई देते थे । उस भीषण अधकार को देख कर अभिमन्यु ने भास्कर नामक अस्त्र का प्रयोग किया। जिस के छूटते ही अधकार विदीर्ण हो गया । चारो ओर उजाला ही उजाला फैल गया। कुपित होकर अलम्बुष ने एक ऐसा अस्त्र चलाया कि सैनिको को चारों ओर ऊपर से पहाड़ टूटते दिखाई दिए, तभी अभिमन्यु ने एक ऐसा ग्रस्त्र चलाया कि हवा का तूफान सा चलने लगा और आखो के श्रागे से लुप्त हो गए। श्रलम्बुष ने अभिमन्यु के अस्त्र के जवाब में एक ऐसा ग्रस्त्र प्रयोग कियाकि चारो ओर ग्रगारे से बरसने
तब
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