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________________ ............... जैन महाभारत ४४० के नेतृत्व मे कौरव-बीर आक्रमण हेतु आगे बढे । दोनो ओर से युद्ध प्रारम्भ हो गया। दोनो ओर के वीर एक दूसरे की ओर दौडकर युद्ध करने लगे। उस समय दोनो ओर वीरो के आगे वढने, धनूपो की टकारों और हाथियो व घोडो ने शोर की ध्वनि से पृथ्वी डगमगाने लगी। चमचमाते अस्त्र निर प्राये। गदाए टकराने लगी। हाथियो की चिघाडो का शो' गया। तभी दूसरी ओर से जगल मे से गीदडो की पावाले दिन मे गीदों की आवाजे कुछ विचित्र सी लग रही थीकुत्तो ने एक साथ मिलकर प्रार्त्तनाद किया। आकाश उल्काए पृथ्वी की अोर गिरने लगी। इन कुशुभ र दोनो सेनापो के हाथियो और घोडो की अावाजे ई और सिंहनाद, गदाग्रो के टकराने से निकलने धनुपो की टकारे बडी ही भयानक प्रतीत होने / अभिमन्यु कौरव सेना के बीच मे / बहुत चाहा कि उसे मार्ग न मिले पर वह और वह सैन्य समुद्र मे घुसते हुए अपने वाणो. सैनिको के प्राण हरने लगा। अपने बाणो से ७. हाथियो का सिर और कितने ही घोडो का शरीर . / डाला । जयद्रथ, द्रोणाचार्य, अश्वस्थामा और कृपाचार्य जैर. रथियो को चक्कर देता हया वह बडी ही चतुरता और सफा रणागण मे चक्कर लगा रहा था। अपने प्रताप से शत्रुयो को सन्त५ करते देख कर राजापो को ऐसा प्रतीत होता था मानो रण मे दो अर्जुन उतर आये है। अपने पैने वाणो से उस ने कितने ही अश्वारोही, कितने ही गजारोही और कितने ही रथी व पदादि यम लोक पहचा दिए और कुछ ही देर मे उस के सामने आई हुई कारव सेना के पैर उखड गए। कोरव सैनिक अभिमन्य से ग्रातकित होकर घोर पात नाद कर रहे थे, जिसे सुन कर दयोधन ने अलम्बप से कहा-"महावाहा अभिमन्य अपने पिता के समान ही पराक्रम दिखा रहा है इस समय तुम ही एक ऐसे वीर हो जो उस मुर्ख का सर कुचल सको। क्याकि तम सभी विद्यायो मे पारगत हो। गोत्र जाप्रो और उर्म यमलान लगे। पर अभिमन्यु और इस पर अस कर वह अपने बहतेरा
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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