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नौवा दिन
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अर्जुन के गान्डीव से छूटे बाणो से अधिक घातक है।"
दुर्योधन पितामह को उतेजित ही करना चाहता था। जव उस ने देखा कि वे दूसरे दिन भीषण युद्ध करने का वचन दे चुके तो वह कुछ शात हो गया और बोला-"पितामह ! आप को मेरी बातें कटु लगी होगी पर जब मैं पाण्डवो की तनिक सी भी विजय देखता हू तो मेरी छाती पर सांप लोट जाता है। आप यदि भीषण सग्राम करेंगे तो कल ही पाण्डवो के छक्के छूट जायेगे।"
पितामह ने उसे सन्तुष्ट करने के लिए अपने वचन को दोहराया और अन्त मे वोले-"बेटा | अपने पक्ष वाले लोगो पर विश्वास रक्खो। अब समय अधिक हो गया। जाम्रो निश्चित होकर विश्राम करो।"
x xxx नवें दिन पितामह ने सर्वतो भद्र व्यूह की रचना की। कृपाचार्य, कृतवर्मा, गैव्य, शकुनि, जयद्रथ सुदक्षिण और धृतराष्ट्र के पुत्र पितामह के साथ अग्रिम पक्ति मे खडे हए। द्रोणाचार्य, भूरिश्रवा, शल्य और भगदत्त व्यूह की दाहिनी ओर नियुक्त किए गए। अश्वस्थामा, सोमदत्त और अवन्ति राजकुमार अपनी विशाल सेनाओ सहित बायी ओर खडे हुए। भिगर्तराज के वीरो और उसकी सेना से रोक्षत दुर्योधन व्यूह के बीच मे था। महारथी अलम्बुष और श्रुतायु सारी व्यह वद्ध सेना के पीछे थे। इस प्रकार सनापति की आनानुसार सभी ने अपने अपने स्थान ग्रहण किए और कौरव सेना युद्ध के लिए तैयार हो गई।
दूसरी ओर पाण्डवो की सेना भी व्यूह में खड़ी हुई। युवाप्ठर, भीमसेन, नकुल और सहदेव व्यूह के मुहाने पर थे। तथा वृष्ट घुम्न विराट, सात्यकि, शिखण्डो, अर्जुन, घटोत्कच, चेकितान, कुन्ता भोज, अभिमन्यु, द्रपद, युधामन्यु और केकय राजकुमारयह सभी वीर कौरवो के मुकाबले पर अपना व्यूह बनाकर खड़े हुए। सेनापति ने इन सब के स्थान निश्चित कर दिए थे। जव पाण्डवो की सेना का व्यूह तैयार हो गया तो युद्ध के लिए तैयार होने की सूचना के रूप मे शंखनाद किए गए । पाण्डवो के गखनादो को मुनकर कोरवो का रण का वाजा बजने लगा और भीष्म पितामह