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________________ नौवा दिन वीरो को मरवा रहे है। यह युद्ध है युद्ध, लज्जा की तो मारे जाओगे ।" ४३७ कर्ण की बात दुर्योधन की समझ मे ग्रागई और वह आवेश मे आकर पितामह के शिविर की ओर चला । X X X X पितामह दूसरे दिन के युद्ध की योजना पर विचार कर रहे थे तभी दुर्योधन पहुचा । पितामह ने उसे आव भगत से बैठाते हुए कहा- "कैसे आना हुआ ? क्या कोई विशेष बात है ?” अपना रोष प्रगट करते हुए दुर्योधन ने कहा - "पितामह ! रोज रोज की पराजय और अपने भ्राताम्रो व वीरो की हत्या से मैं तग गया हूं । आप को न जाने क्या हो गया है । आप है तो हमारी ओर | चढ जा बेटा सूली पर भला करेंगे भगवान कह कर आप ने हमे सूली पर टांग दिया और स्वयं पाण्डवो के स्नेह मे दुबले हुए जा रहे है । कुन्ती नन्दनो से इतना ही मोह है तो लोक दिखावे के लिए हमारी ओर से लडने की ही क्या आवश्यकता है ?" प्रवेश मे कहे गए दुर्योधन के वचन पितामह को तीरो की भाति चुभे । पर शांत भाव से बोले – बेटा ! बडे प्रवेश मे हो । क्रोध मे यह भी ज्ञान नही रहा कि कह क्या रहे हो ? भगवान ने कहा है कि क्रोध अनर्थो का मूल है ।" तभी तो ' "पितामह । " श्राप मेरी बातो को टालने की चेष्टा न करे - दुर्योधन ने जली कटी सुनाते हुए कहा - मैं जो कह रहा हू सच है । यह वात न होती तो क्या पाण्डव आप के होते हुए ठहर सकते थे? आज तक तो उन का पता भी न चलता। उस दिन घटोत्कच से मैं पराजित हुआ पर आप पर उसका कोई प्रभाव ही न हुआ आज अर्जुन को ही ग्राप नही रोक पाये । इस बात पर विश्वास करने के लिए भला कौन तैयार हो सकता है कि अर्जुन को रोकना आप के बस की बात नहीं। आप तो अकेले ही सारे पाण्डवो को काफी हैं। मैंने आप पर गर्व किया और आप के कारण ही मेरा प्रिय वीर कर्ण युद्ध से अलग है। वह अकेला ही पाण्डवो को मार सकता है। मैंने आपको अपनी सेनाका सेनापति बनाया तो इस लिए नही कि आप पाण्डवो के मोह मे मुझ परास्त कराते रहे । अब मैं
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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