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________________ सातवा दिन ४२१ क्या हो ? अब तो मृत्यु सिर पर मण्डरा रही है।" __ दौडा दौडा दुर्योधन भीष्म जी के पास गया और वडे दुख के साथ फूट फूट कर रोने लगा दुर्योधन की यह दशा देख कर भीष्म जी भी बड़े दुखित हुए। उन्होने पूछा- "बेटाअश्रुपात का क्या कारण । रणभू म मे होकर तुम्हारी आखो मे आसू ??" "पितामह ! भीमसेन ने मेरे पाठ भ्रातायो का बध कर डाला और अब वह हमारे अन्य शूरवीरो का सहार कर रहा है। हा शोक मेरे परिवार का नाश हो रहा है और पाप तो जैसे मध्यस्थ से हो गए है आप कुछ करते ही नही ! मैं मिट रहा है। और आप हमारी उपेक्षा कर रहे है। मेरे भाई मरते रहे और आप की यह उपेक्षा नीति चलती रहे तो मेरी आखो मे आँसू न आयेगे क्या ?"दुर्योधन ने दुखित होकर कहा । बात कटु थी, पर उस के शोक विह्नल होने के कारण भीष्म जो का गला भर पाया। बोले-'वेटा । मैंने, द्रोणाचार्य और विदुर जी ने तुम से बहुत कहा, गान्धारी ने तुम्हे कितना ही समझाया पर तुम ने हमारी एक न सुनी। हम ने चाहा कि तुम हमे युद्ध में न डालो, पर तुम हठ पर अड गए। अब उसी का यह परिणाम है कि तुम्हारे नेत्रो मे ऑसू हैं। यह हमारी उपेक्षा के कारण नही, तुम्हारे प्रारब्ध के कारण हैं। अव तो तुम्हे परलोक में ही सुख पाने की इच्छा से युद्ध करना चाहिए। हम जहा तक हो गा, तुम्हारे लिए लड़ेगे।" फिर भीष्म जी दूयोधन को सन्तोप वन्धाते हए भीषण युद्ध करने लगे यह देख युधिप्टर की आज्ञा से उनकी सारी मेना क्रोध मे भरकर भाम जी के ऊपर टूट पड़ी। धष्ट द्यम्न, शिखण्डी, सात्यकि, समस्त सोमक योद्धाओ के साथ राजा द्रोपद और विराट, केकय फुमार धृष्ट केतु और कुन्ती भोज सभी ने भीष्म जी पर आक्रमण किया। अर्जुन, द्रौपदी के पुत्र और चेकितान आदि दुर्योधन के भज राजानो से युद्ध करने लगे। तथा अभिमन्यू, घटोत्कय और माम सेन ने यूद्ध से अपने प्राण वचाने की चेष्टा करते कोरवों पर घावा किया। इस प्रकार पाण्डव और उनकी मेना तीन भागों में विभक्त हो कर कोरवों का संहार करने लगी और कौरव पाण्डवों के
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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