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________________ ४२० जैन महाभारत उसी समय भीमसेन ने एक ऐसा तीक्ष्ण बाण मारा कि भीष्म जी का सारथी पृथ्वी पर लुढक गया और वाणो को वर्षा से तग ग्राकर घोडे भीस्म जी के रथ को लेकर रणभूमि में इधर उधर भागने लगे। घोडे बिगड गए थे, इस लिए भोऽम जी को युद्ध जारी रखना असम्भब हो गया । और इस से पहले कि वे अपने घोडो को नियंत्रित करे घोड़े रथ लेकर भाग गए। तब तो भीमसेन चारों ओर मार करता हुआ घूमने लगा, जो भी सामने आया उसे ही मार गिराया । अनायास ही घृतराष्ट्र पुत्र सुनाय भीमसेन के सामने आ गया और वह तत्काल ही मारा भी गया, तब तो धृतराष्ट्र के सात वेटे अमर्प से भर गए और आपे से बाहर होकर वे भीमसेन पर टूट पड़े । और एक रण कुशल धृतराष्ट्र पुत्र ने अपनी रण कुशलता से भीमसेन की एक भुजा को घायल कर दिया। परन्तु मदोन्मत्त गज समान युद्ध रत भीमसेन के रण कौशल मे कोई कमी न पाई । उस ने वाणो की वर्षा जारा रक्खी और उस घायल करने वाले कौरव का सिर एक ही वाण से उडा दिया, दूसरे की छाती तोड दी. तीसरे का मस्तक धूल की तरह उड़ा दिया, चौथे को कई बाणो से लुढका दिया और अन्त मे उन सभी को मार डाला। आठ भ्राताओं को मृत देख कर अन्य कौरव भ्रातागो का हृदय काप उठा। वे सोचने लगे कि भीमसेन ने 'भरी सभा में कौरवो को मार डालने की जो प्रतिज्ञा की थी, आज वह उसे पूर्ण कर देगा। यह सोच कर वे अपने प्राण लेकर भाग पड़े। भाईया के मरने से दुर्योधन भी शोक विह्वल हो गया. उस ने अपने सैनिका को आज्ञा दी कि-'भीमसेन को चारो ओर से घेर लो और मार हालो ।" सैनिक तो पहले से ही यमराज का रूप धारण किए हुए भीमसेन के भय से कांप रहे थे, इस लिए आज्ञा पाते ही कुछ के ता प्राण सूख गए, किसी के हाथो से शस्त्र ही छूट गए और कुछ रण जी की । भूमि से भागने लगे। यह स्थिति देख कर दुर्योधन को विदुर जा का बातें याद आ गई। वह सोचने लगा- वास्तव में विदुर जी बड़ बुद्धिमान और दूर्दशी है, उन्होने ठीक ही कहा था कि भीमसन अपनी प्रतिज्ञा अवश्य हो पूर्ण करेगा, इस लिए उस के कोप से बचन का एक मात्र उपाय यह है कि रण का संकट मोल न लो।-पर अव
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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