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जैन महाभारत
"और इन सभी के पुत्र, तथा अन्यं योद्धा, एक वडी सेना सहित साथ ही पाण्डवो की सेना व पाण्डव रणभेरी बजाते हुए चल पड़े द्वारिका से पैतालीस योजन दूर सेन पल्लो स्थान पर सेनाए रो दी गई । उधर से वसुदेव के अनुयायी खेचर भी आ गए। " • जर्रासिन्ध की सेनाओं से एक योजन दूर ही सेनाए-रोक दे गई थी और एक राजदूत द्वारा जरासिन्ध पर सवाद भेजा-गय कि अच्छा यही है, ज़रासिन्ध अपनी सेनाओं सहित वापिस चल जाय। - परन्तु जरासिन्ध के सिर पर तो अहकार सवार था, ह. कव मानने वाला था, उसने अपने एक मंत्री द्वारा श्री कृष्ण । सवाद भिजवाया कि कस बध का बदला लेने के लिए जरासि आया है वह - 'खून का बदला - खून' की नीति, मानने वाला और विना श्री कृष्ण से बदला लिए नहीं लौटेगा।
श्री कृष्ण ने मंत्री को उत्तर देते. हुए कहा- "आप ज़रासि से जाकर कहें कि यदि वे बिना युद्ध के नही मानेगे तो हम भी स प्रकार से तैयार हैं । परन्तु कस वध की आड ले कर वे युद्ध न करे. उस पापी ने मेरे छ. भ्राताओं को न जाने क्या किया। उसने प्रज को बहुत कष्ट पहुचाए थे, उस ने अपने पिता को बन्दी बनाया थ मेरे पिता जी को कपट से उसने जेल मे डाल रक्खा था, मेरा व करने के लिए कितने ही षडयन्त्र किए थे। इस लिए उस ने जैम किया वैसा फल पाया। अतएव- कस का बदला लेने का विचा अत्याय पूर्ण है। हम नहीं चाहते कि बिना कारण ही रक्तपात हो, अतएव वह लौट जाये, वरना उस के हठ से हमे भी युद्ध करन पंडेगा, जिसका परिणाम उस के हक मे ठोक नही होगा।". . .
मन्त्री ने श्री कृष्ण के साथी योद्धाओं को देखा और स्वर घबरा गया, उस.ने जरासिन्ध्र से जाकर श्री कृष्ण का उत्तर को सुनाया और अन्त मे बोला-"महाराज ! शत्रु दुर्वल भो हो तो.में उसे अपने से अधिक शक्तिं शाली समझना चाहिए। यह युद्ध युक्ति संगत नही है, और इस समय मुकावले के वीरो को देख कर भो हमारा युद्ध करना उचित नहीं है ।"