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जरासन्ध वध
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चटादें तो तब कहना ।" भीम गरज कर बोला युधिष्ठिर श्री कृष्ण और भीम की वार्ता के समय विचार मग्न थे, वे बहुत सोच विचार के पश्चात बोले- "यदि सम्राट पद प्राप्त करने के लिए
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• मुझे अपने भीम और अर्जुन जैसे वीर भ्राताओं को दाव पर लगाना f पडे, और कितने ही निरपराधी मनुष्यो के रक्त से अपने मस्तक पर
सम्राट का तिलक लगाना हो, तो मैं सम्राट पद को प्राप्त करने की कामना ही नही कर सकता। मैं नही चाहता कि मेरी एक आकांक्षा की पूर्ति के लिए रक्त पात हो । इस लिए अच्छा है कि में अपने मित्रों और भ्राताओं के उस प्रस्ताव को भूल जाऊ और सुख शांतिपूर्वक राज्य काज करू।"
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श्री कृष्ण बोले- " आप के विचार आदरणीय है । धर्म पथ बरं के राही ऐसा ही निर्णय किया करते हैं । तथापि जरासन्ध जैसे पापी नरेश की करतूतो को रोकने के लिए ग्राप को कुछ न कुछ ॥ अवश्य ही करना चाहिए। कोई शक्तिवान व धर्म प्रिय नरेश यह सहन नहीं कर सकता कि कोई अन्यायी स्वच्छन्दता पूर्वक छोटे छोटे नरेशो का सहार करता रहे और अपनी ग्राकाक्षा पूर्ति के लिए पशु वध से आगे जाकर नरवध करने का साहस करे ।"
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"आप की बात ठीक है । तथापि मैं अपने प्रिय वन्धुओ को किसी ऐसे कार्य के लिए नियुक्त नही कर सकता जिस मे उन के प्राणो पर वन श्राये । हाँ, यदि आप चाहें तो आप के सहयोग के लिए मैं और मेरे बन्धु गरम उरू नर पिशाच पाप लीला रोकने मे पन् सर्वदा तत्पर रहेगे ।" - उत्तर मे युधिष्ठिर ने श्राश्वासन दिया |
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भाग्यवश इस निर्णय के कुछ दिनों बाद ही जरासन्ध ने श्री कृष्ण पर आक्रमण करने की मूर्तता कर डाली | श्री कृष्ण के तद्वारा जत्र महाराज युधिष्ठिर को यह समाचार मिला उन्होंने भीम और अर्जुन की सेना सहित तुरन्त द्वारिका को भेज दिया।
द्वारिका से श्री कृष्ण, चलराम, समुद्र विजय, वसुदेव,
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उस समय यहो वात तय पाई थी कि अब की बार यदि जरासन्ध ने कोई नया उत्पात खडा किया तो श्री कृष्ण के नेतृत्व मे पाण्डव अपनी पूर्ण शक्ति उसके सहार के लिए प्रयोग करेंगे ।