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जैन महाभारत
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मत ही देंगे। इसी लिए परामर्श के लिए मैने आप को बुलाया है । अव आप बताईये कि आपकी क्या सम्मति है ।
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श्री कृष्ण जी ने उत्तर दिया- " राजन् ! राजसू यज्ञ कां अर्थ है वह महोत्सव जिसमें खण्ड ( क्षेत्र ) के समस्त राजा एकत्रित हो कर महोत्सव करने वाले राजा को सम्राट पद से विभूषित करते हैं, और उस के प्राधीन रहना स्वीकार करते है । सम्राट् पद प्राप्त करने के लिए आप कोई महोत्सव करे यह बैंडी प्रसन्नता की बात है, पर देखना यह है कि क्या अन्य राजा, आपके प्राधीन श्रीना स्वीकार करेगे ? यदि यह भी मान लिया जाय कि दुर्योधन तथा 'कर्ण आदि आपको सम्राट बनाने मे कोई आपत्ति नही करेंगे तो भो जरासन्ध तो कदापि आपको सम्राट मानना स्वीकार न करेगा । उसने कितने ही राजाओ को बन्दी बनाकर अपने बन्दी गृह मे डाल रखा है। तीन खण्ड के राजा उस से घबराते हैं । और संहर्ष उस के प्राधीन होना स्वीकार कर चुके है । यहाँ तक सुना है कि जब सौ नृप उसके बन्दीगृह मे प्रजायेंगे तब वह उन से हो राजसूयज्ञ करेगा, और पथ भ्रष्ट लोगो के मतानुसार यज्ञ मे पशुओ की बलि के स्थान पर कुछ राजाओं की बलि देगा । ऐसे अन्यायी नरेश से मत ग्राशा करना कि वह आपको सम्राट मानें गा, कोरी भूल है । इस लिए यदि आप को सम्राट पद चाहिये तो पहले जरासन्ध से निवटिये ।”
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' भीम वही उपस्थित था, श्री कृष्ण की बात सुनकर वह
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वोल उठा -- यदि भ्राता जी श्राज्ञा दें तो उस धूर्त से मैं अच्छी तरह निबट सकता हू । मुझ से कहा जाय तो उस पापी को यम लोक पहुचा दू । और अपनी गदा से उस के समस्त सहयोगियों को एक एक कर के वध कर डालू ं ।”
"भीम ! माना कि तुम बड़े वलवान हो, पर जरासिन्धं भी कोई कम शक्तिवान नही है । शिशुपाल जैसा साधन सम्पन्न और पराक्रमी नरेश तक उस के आधीन है। उसे परास्त करने के लिए. शिशुपाल और उसकी सेना का सामना करना पड़ेगा । " श्री कृष्ण ने कहा ।
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" जो भी हो। मैं और अर्जुन बलि मिल कर उस को
उस को धूल न