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________________ छटा दिन ४०१ लेकर युद्ध करते. उसकी पूर्ति के लिए आवश्यक प्रबन्ध करते और पहले ही योजना बनाकर व्यूह रचना करते थे । 1 - तो उस दिन ज्यो ही रात्रि का घूंघट उठा और सूर्य की रूपहली किरणो का मुखडा दिखलाई दिया, दुर्योधन अपने शिविर से निकल कर भीष्म जी के शिविर की ओर बढ़ा। उसके मुख पर चिन्ता की रेखाए स्पष्ट थी, वह कुछ सोच रहा था और उसके भारी नेत्रों को देखकर यह स्पष्ट हो जाता था कि वह रात्रि को सो नही पाया है। विचारो मे डूबा हुआ वह चला जा रहा था, कभी उसके चेहरे पर शोक एव दुःख के भाव झलक प्राते तो कभी क्रोध तथा आवेश उसके बदन पर प्रतीत होता । विभिन्न भावनात्रों के ज्वार भाटे मे डूबता उछलता दुर्योधन भीष्म जी के पास पहुचा । पितामह दैनिक कार्यो से निवृत होकर अपनी सैन्य पोशाक पहन रहे थे । ज्यो हो मुह लटकाए दुर्योधन को अपने सामने पाया चोले - "ग्राज प्रात ही दुखित मुद्रा लिए ग्रा रहे हो क्या बात है ?" "दादा जी । ग्राप मुझ से ऐसा प्रश्न कर रहे है, मानो आपको कुछ पता ही नही है । आप मेरे मन की व्यथा को जानते हुए भी ऐसा युद्ध कर रहे हैं। इतना कटु परिहास न कीजिए । "दुखित होते हुए दुर्योधन ने कहा । komand भीष्म जी ने दुर्योधन की बात सुनी तो वे स्वयं ग्राश्चर्य चकित रह गए। श्राश्चर्य चकित इस लिए कि गत दिनो हुई कौरवों की हार से दुर्योधन का मन इतना कथित हो जायेगा. धीरज बिल्कुल छोड़ देगा, वह इसकी उन्हे श्राशा ही न थी । फिर उनके विचार से विगत ५ दिनो मे ऐसी तो कोई बात नही हुई थी जिससे यह प्रगट होता है कि पाण्डव विजय के पथ पर अग्रसर हो रहे है और कौरव बिल्कुल ही डूब रहे हे । श्रत' वे बोले - "बेटा ! अभी तो युद्ध होते पाच ही दिन हुए हैं। इन पाच दिनो मे तुम्हे कोई ऐसी तो क्षति नही पहुंची जिसके कारण तुम इतने दुखित हो । हा १ हमारे जो वीर मारे गए, उनका शोक किया जा सकता है । परन्तु दतने भयकर और महा युद्ध मे वीरों की वलि न हो, यह तो सम्भव है। हमे तो न जाने कितने महान योद्धाओ का विछोह भी सहन करना होगा । इस युद्ध में विजय यही तो नहीं मिलने वाली । फिर जैसा साहसी अभी से दिल तोडे बैठे, धीरज वो देगा तो तुम
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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