SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 410
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * सैतीसवां परिच्छेद *. . छटा दिन महाभारत के युग मे सैन्य व्यूहो के नाम पशु अथवा पक्षी के नाम पर होते थे। आप जानते ही होगे कि व्यायाम के जो आसन प्रचलित है उनके नाम भी पशु पक्षियो के नाम पर ही होते है, जैसे मत्स्यासन. गरुडासन आदि। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रासनो के उक्त नाम भी उसी युग की यादगार है। हा सैन्य शक्ति की व्यूह रचना आजकल उस युग के समान नहीं होती, युग बदल गया है और विज्ञान के नवीन चमत्कारो के साथ साथ युद्ध प्रणाली और सैन्य व्यवस्था मे भी बहुत परिवर्तन आ गया है। उन दिनो किसी व्यूह विशेष की रचना करते हुए यह ध्यान रखा जाता था कि सेना का फैलाव कैसा हो ? विभिन्न सेना विभागो का विभाजन किस प्रकार-हो- किस स्थान पर कौनसा भाग किस के नेतृत्व मे रक्खा जाये ? कौन कौन से सेना-नायक किन-किन मुख्य स्थानो पर सन्य सचालन को ? किस की सहायता के लिए अवसर आने पर कौन जा सकता है ? इत्यादि । इन सब वातों को खूब सोच विचार कर और शत्र सेना के योद्धाओ तथा उनके आक्रमण आदि का विचार करके आक्रमण तथा बचाव दोनों प्रकार की कार्रवाइयो की कुशल व्यवस्था करना ही व्यूह रचना कहलाती थी। जिस व्यूह का आकार गरुड के आकार का होता वह गरुड व्यूह कहलाता और जो मगरमच्छ के आकार का होता उसे मकर-व्यूह कहते थे। युद्ध के सचालक जिस दिन जो उद्देश्य
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy