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________________ जैन महाभारत स.ग्य आ गया है कि अपनी शपथ को पूरा कर दिखायो। हमारी सेना इस समय भय विचलित हो रही है . उन के पांव उखड रहे है, यही समय है कि भीष्म पर जोर का आक्रमण कर के अपनी सेना का साहस बधाो और उसे नष्ट होने से बचाओ।" . अर्जुन ने यह सब देखा और श्री कृष्ण की बात सुन कर बोला-"माधव । आप रथ को भीष्म जी की भोर कर लीजिये.।" अर्जुन को अपनी ओर आता देख भीष्म जी ने भयकर वेग से बाण वर्षा आरम्भ करदी। परन्तु अर्जन ने अपने वाणों के द्वारा ही उन बाणो से अपनी रक्षा की और अन्त में तीन बाण ऐसे मारे कि भीष्म जी का धनुष टूट गया उन्होने ज्यो ही दूसरा धनुष लेकर उसकी डोरी चढानी चाही कि अर्जुन ने पुनः दो बाणों से उन के हाथ के धनुष को तोड डाला। तब भीष्म जी ने शीघ्रता से तीसरा धनुष लेकर अर्जुन पर तडातड़ तीन बाण चलाये परन्तु अर्जुन ने उन्हे बीच ही मे काट दिया। फिर भीष्म जी की ओर से बाणो की वर्षा होने लगी अर्जुन अपनी रक्षा तो करता रहा, परन्तु उसकी ओर से कोई आक्रमण कारी बाण न छूटने के कारण श्री कृष्ण को सन्देह हुआ कि अर्जुन के हृदय मे भीष्म जी के प्रति जो असीम श्रद्धा है, उसी के वशी भूत हो कर वह अपनी पूरी शक्ति से नहीं लड़ पा रहा। उधर भीष्म जी के कई ऐसे तीखे वाण आये जो श्री कृष्ण को चोट पहुचा गए यह देख श्री कृष्ण ने इस "प्रकार रथ फो घुमा फिरा कर हाको कि भीष्म जी का कोई भी तीर अर्जुन अथवा उन्हे न लगे। कितनी ही देर तक यह चलता रहा पर अर्जुन अपने वाणो का प्रयोग आत्म रक्षा मे ही कर पाया। यह देख क्रुद्ध होकर श्री कृष्ण सुदर्शन चक्र लेकर रथ से कूद पडे और शीनता से भीष्म जी की प्रार दौडे ! भीष्म ने जब श्री कृष्ण को प्राक्रमण करने आते देखा, वे तनिक भी विचलित न हुए। 'परन्तु जब अजुन ने उन्हे देखा तो वह रथ स कूद पड़ा और दौड कर उन्हे रोक लिया। कहा-'मधु सूदन । आह अपनी प्रतीज्ञा क्यो भग करते है आप अस्त्र क्यो उठाते है ?" श्री कृष्ण ने कहा- "हटो अर्जुन : तुम युद्ध मे अपने - बडो का आदर करते हुए लड नहीं पा रहे तो क्या मैं भी पाण्डव सेना को
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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