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________________ तीसरा दिन तो आप की सेना की व्यवस्था भग हो जाती है और आप से कुछ करते नही बनता ? आप के अन्दर इतनी शक्ति है कि आप चाहें नो पाण्डबो को एक दिन मे भगा सकते हैं, परन्तु आप से कुछ होता ही नही। इस का मतलब है कि आप पाण्डवो से स्नेह रखते है और वह स्नेह ही आपको हृदय से लड़ने नही देता। यदि यही बात थी तो अाप ने पहले ही क्यो न कह दिया कि मैं पाण्डवो से नहीं लड सकता। एक तो आप के कारण कर्ण युद्ध मे नही उतर रहा । दूसरे श्राप और द्रोणाचार्य, जब कि चाहे तो पाण्डवो को मार भगा सकते हैं पाण्डव हमारी सेना को मारे डाल रहे हैं । आप को जी लगा कर युद्ध करना चाहिए।" दुर्योधन की बात सुनकर भीष्म जी को बडा क्रोध आया और वे बोले-'मैंने अपनी बात छिपाई ही कहा है ? मैंने तो पहले ही कहा था कि तुम पाण्डवो से नही-जीत सकते। पर तुम ने मेरी सुनी भी हो। मैं बूढा हो गया है फिर भी तुम्हारी ओर से जी जान तोडकर लड रहा है। पर पाण्डवो की शक्ति के सामने कुछ बन नही पा रहा इसमे मेरे पाण्डवो के प्रतिस् नेह को बिल्कुल दखल नहीं।' इतना कहकर भीष्म ने पुनः युद्ध आरम्भ कर दिया। इधर दिन के पहले भाग मे कौरव सेना तितर बितर हो जाने से पाण्डवो मे हर्ष छाया था। सारी सेना आनन्दित थी। पाण्डवों का विचार था कि आज भीष्म पुनः कौरव सेना को एकत्रित करके भयंकर रूप मे न लड पायेंगे। परन्तु जब भीम जी ने कौरव सेना व्यवस्थित करके पुनः आक्रमण किया और क्रोध मे आकर भयकर रूप मे लहे तो पाण्डवो को अपने भ्रम का ध्यान पाया। जो वीर भाम जी के सामने पाया, वही ढेर हो गया। भीम जी जिधर स निकलते मारकाट करते चले जाते । पाण्डव सेना की व्यवस्था भग हो गई और श्री कृष्ण, अर्जुन तथा शिखण्डी भी अपने प्रयत्नों क बावजूद सेना मे अनुशासन तथा व्यवस्था न रख सक । ... यह देख श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा-"पार्थ ! अब तुम्हारी परक्षा का समय आ गया। तुम ने शपथ ली थी न कि भीम द्रोण प्रादि गुरु जनों, मियों और सम्बन्धियो का सहार करूंगा। अब
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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