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जैन महाभारत
भीषण शस्त्र अस्त्रो का प्रहार वीच ही मे कट गया।
उधर दूसरी ओर शकुनि को भारी सेना सहित पाण्डवो की ओर बढते देखकर अभिमन्यु और सात्यकि उसके मुकाबले पर जा डटे। शकुनि ने बडी रण कुशलता दिखाई और सात्यकि का रथ तहस नहस कर दिया तव सात्यकि बड़े जोश में आ गया और अभिमन्यु के रथ पर चढकर शकुनि की सेना पर भयकर आक्रमण करके उसकी सेना को नष्ट कर डाला।
युधिष्ठिर जिस सेना का संचालन कर रहे थे उस पर भीष्म और द्रोणाचार्य एक साथ टूट पड़े। यह देख नकुल तथा सहदेव दोनो युधिष्ठिर की सहायता के लिये दौड पडे और बाणो का भयकर प्रहार कर दिया। भीम तथा घटोत्कय ने एक साथ दुर्योधन पर आक्रमण किया। घटोत्कय के रण कौशल के सामने भीमसेन की चतुराई तथा रण कौशल भी फीके पड गए भीमसेन के एक बाण से दुर्योधन धक्का खाकर बेहोश हो गया। यह देख सारथी ने सोचा कि यदि कही कौरव सेना को दुर्योधन के मूच्छित होने का पता चल गया तो सेना मे खलबली मच जायेगी, इस लिए वह शीघ्र ही दुर्योधन के रथ को रण क्षेत्र से दूर ले गया। परन्तु जव कौरव सेना ने दुर्योधन का रथ न पाया तो सेना समझी कि दुयोधन रण से भाग गया, इस लिए सारी सेना मे हाहाकार मच गया और सेना तितरबितर हो गई।
भय विह्वल होकर रण से भागते कौरव सैनिको का भीमसेन ने पीछा किया और उन्हे बाण मार कर बहुत ही परेशान किया।
- भागती सेना को भीष्म तथा द्रोणाचार्य ने बड़ी कठिनाई से रोका और उसे एक चित करके पुन व्यूह रचना की। इतने मे दुर्योधन की मूळ भग हो गई और उसने पुन रण स्थल पर पाकर परिस्थिति को सम्भालने मे सहयोग दिया। जब जरा शाति हुई और सेना व्यवस्थित हो गई तो दुर्योधन पितामह भीष्म के पास गया और इन्हे जली कटी सुनाने लगा। बोला
- "पाप और आचार्य जी करते क्या है आप लोग अपनी सेना को भी व्यवस्थित नहीं रख पाते । जब भयकर आक्रमण होता है