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________________ । * चौतीसवां परिच्छेद * तीसरा दिन - युद्ध का समय होने पर भीम जी ने अपनी सेना की गरुड के आकार मे व्यूह रचना की और उसके अगले सिरे का बचाव दूर्योधन के जिम्मे किया। कल हई क्षति को ध्यान मे रखकर ग्राज की व्यूह रचना सतर्कता से की गई थी। शत्र सेना की व्यूह रचना देखकर पृष्ट द्युम्न ने अपनी सेना की व्यूह रचना अर्ध चन्द्र के प्राकार पर का। एक सिर पर अर्जुन तथा दूसरे पर भीमसेन रक्षा के लिए खडे हो गए। , व्यूह रचना के उपरान्त युद्ध प्रारम्भ होने का बाजा बजा और फिर दोनो सेनाए एक दूसरे पर आक्रमण करने लगी। आज पाना आर की सैनिक टुकड़िया इस प्रकार एक दूसरे से गुथ गई आर उनमे इस प्रकार भीषण सग्राम होने लगा कि रथो, घोडो और हाथियों के तेज चलने के कारण इतनी धूल उड़ी कि गर्द के मारे आकाश मे दीप्तिमान सर्य भी न दिखाई देता था। अर्जुन ने शत्रु ना पर भयकर आक्रमण किया फिर भी वह शत्रु सेना का घेरा नताह सका। दूसरी ओर से कौरवो ने भी एक साथ मिलकर अजुन पर आक्रमण किया । टिडी दल की भाति अपनी ओर आती कारव सेनाओं को देखकर अर्जन ने बडे वेग से वाण बरसाये और चारापोर वाण वरसा कर अपने चारो ओर वाणो ही बाणो का एक घरा सा बांध दिया जिससे कौरव सेनामो के द्वारा चलाए गए
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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