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दूसरा दिन
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घाट उतार देगा। महारथी कर्ण ने, जो मुझ से स्नेह रखता है, आप ही के कारण हथियार न उठाने का प्रण कर रक्खा है । जान पडता हैं उस की अनुपस्थिति में मुझे निराशा का ही सामना करना होगा। आप की शक्ति कहा गई। कोई उपाय बताइये, कुछ कीजिए। किसी भांति अर्जुन को मौत के घाट उतारिये।" , इन कटु वचनो से भीष्म को बडा क्रोध आया और जोश में आकर उन्होने अर्जुन पर भयकर आक्रमण कर दिया। उस समय भोम तथा अर्जुन मे ऐसा भयकर युद्ध हया कि आकाश मे स्वयं देवता उसे देखने के लिए एकत्रित हो गए।
दोनो वीरो में तुमुल युद्ध हो रहा था। सभी प्रकार के अस्त्र शस्त्र चल रहे थे। दोनो के रथ इस प्रकार आपस मे युद्ध रत थे कि केवल ध्वजा को पहचान कर ही जाना जा सकता था कि कौन कहा है। भीम जी के कुछ धाण श्री कृष्ण के लगे और उन के श्याम बदन से रक्त वह निकला। इस से अर्जुन कुपित हो गया और भीष्म जी पर बुरी तरह टूट गया।
इधर द्रोणाचार्य से धष्ट द्युमन लड रहा था। दोनो मे भयकर संग्राम हो रहा था। द्रोणाचार्य के वारो से धृष्ट धुमन तनिक न घबराया तव झझला कर द्रोणाचार्य ने उस के सारथी को मार डाला। इस से घष्ट धमन को वहत क्रोध पाया और भारी गदा लकर द्रोणाचार्य के रथ पर टट पड़ा। परन्तु द्रोण ने अपने वाणो कप्रहार से धृष्ट द्युमन का गदा का वार ही न ठीक बैठने दिया। तब धृष्ट द्युमन ने तलवार सम्भाली और द्रोण पर झपटा। द्रोण - इतने वाण मारे कि धष्ट धमन के शरीर मे अनेक घाव लगे भार वह चलने योग्य भी न रहा। यह देख भीमसेन उसी समय पहा पहुंचा और धष्ट वूमन को अपने रथ मे बिठा लिया और पुरन्त वडे वेग से द्रोणाचार्य पर आक्रमण कर दिया। इस प्राग्रामण कारण द्रोणाचार्य थोड़ी देर के लिये अपने स्थान पर रुक गए। म अपन रथ को लेकर रण भूमि से वाहर चलने लगा। दुर्योधन 7 उन दर लिया . तो कलिंग देवा की सेना को उस ने भीमसेन पर आक्रमण का मादेश दिया। जब कलिग मेना ने ग्राममण किया ता भीममेन ने उस के उत्तर में ऐमा प्राकामण किया कि योगी हो