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* तेतीसवां परिच्छेद
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* दूसरा दिन
पहले दिन जो पाण्डव सेना की दुर्गति हुई थीं, उससे सबक लेकर पाण्डव सेना के नायक धृष्ट द्युमन ने दूसरे दिन बड़ी सतर्कता से व्यूह रचना की और सैनिको का साहस बधाया।
युद्ध आरम्भ होते ही कौरव सेना ने भीष्म पितामह के सेना पतित्व मे पुनः पाण्डव सेना पर आक्रमण किया। भीषण युद्ध होने लगा। एक बार के भयकर आक्रमण से पाण्डवो की सेना तितर बितर हो गई। बडा हाहाकार मच गया। असख्य वीर 'मौत के घाट उतारे जाने लगे। र यह देख अर्जुन ने श्री कृष्ण को अपना रथ भीष्य जी की
ओर ले चलने की आज्ञा दी। अर्जुन का रथ ज्यो ही भीष्म जी के रथ के सामने पहुचा, दुर्योधन की आज्ञा से कौरव सेना के प्रमुख वीरो ने भीष्म जी की रक्षा के लिए उन के रथ को चारो ओर से घेर लिया। भीष्म जी ने अर्जुन के ऊपर भयकर बाण वर्षा की। परन्तु अर्जुन को तनिक भी चिन्ता न हुई। उस ने बड़े वेग से , आक्रमण किया और कुछ ही देर में भीष्म जी के चारो मोर की , रक्षा पंक्ति को तोडता हुआ भीष्म जी के सन्मुख पहुच गया। यह देख कर दुर्योधन का भीष्म जी पर से एक वारगी विश्वास उठ गया। भय विह्वल होकर वह बोला-"प्रतीत होता है कि आपके और द्रोणाचार्य के जीते जी अर्जुन सारी कौरव सेना को मौत के