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जैन महाभारत
को नष्ट-भ्रष्ट कर डालते। जव पाण्डवो ने देखा कि श्वेत ने नीप्म जी का मुह फेर दिया है तो वे बडे प्रसन्न हुए।
परन्तु दुर्योधन चिन्तित हो गया । अत्यन्त क्रोध मे भर कर अनेको राजापो सहित सारी सेना ले कर वह पाण्डवो पर टूट पड़ा और अपने वीरो को ललकारा-"क्या हो गया है तुम्हे गौरव शाली क्षत्रिय वीरो। पाण्डवो को गाजर मूलियो की भाति सफाया करदो। यह तुम्हारे सामने है ही क्या ?"
दुर्योधन की इस ललकार से प्रेरित होकर कौरव वीर पाण्डवो पर भूखे सिंहों की भाति टूट पडे । उस की प्ररणा से कृपाचार्य, दुर्मुख, कृतवर्मा और शल्य आदि भीष्म जी की रक्षा करने लगे। परन्तु कुपित श्वेत कुमार ने भयकर युद्ध किया, उस के साथ अन्य पाण्डव पक्षीय वीर भी जी जान तोड कर युद्ध कर रहे थे। इस भयानक युद्ध मे देखते ही देखते हजारो वीर सो गए। असख्य रथो के धुएँ उड गए। हजारो की संख्या मे हाथी और घोडे ढेर हो कर गिर पड़े। श्वेत कुमार ने दुर्योधन की सेना की धज्जिया उडा दी और उसे तितर बितर कर के भीष्म जो पर ही वार कर दिया। इस से दोनो मे घमासान युद्ध होने लगा।
राजकुमार श्वेत ने फिर भीष्म जी के रथ की ध्वजा काट कर गिरा दो। भोण्म जी ने कुपित हो श्वेत के रथ के घोडो और सारथो को मार गिराया। तव श्वेत ने अपना शक्ति नामक अस्त्र भीष्म जी पर चलाया परन्तु भीष्म जी ने अपने वागो से उस का अस्त्र वीच ही मे रोक दिया।
इस पर तश्वे ने भारी गदा उठा कर जोरो से घुमाई और भीष्म जी के रथ पर जोरो से दे मारी। देखते ही देखते भीष्म जी ने रथ से कूद कर अपने प्राणो की रक्षा की श्वेत की गदा के प्रहार से भीष्म जा का रथ चकनाचूर होगया। भीम जी क्रोध के मारे आपे से वाहर हो गए और एक दिव्य वाण खीच कर श्वेत को जोरों से मारा। उस वाण के लगते ही विराट कुमार धाराशायी होगया, उस के वाण पखेरु उड़ गए। यह देख दु.गासम ने वाजे वजवा दिए और हर्ष के मारे नाच उठा। परन्त भीष्म जी का हाथ रुका नही उन्हो ने श्वेत की मृत्यु के बाद पाण्डवों की सेना