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__ युद्ध होने लगा
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उन्हे भो घायल कर दिया और फिर तेज़ी से शल्य की ओर बढा। इसे देखकर कौरवों की सेना मे बडा कोलाहल मच गया। तब श्वेत को इस प्रकार वढते देख दुर्योधन सेनापति भीष्म जी को आगे करके सारी सेना सहित श्वेत के रथ के सामने आ गया और मृत्यु के मुह मे पडे शल्य को भययुक्त किया और तब क्या हुआ, बस वणन से बाहर की बात है। बडा ही भयकर युद्ध होने लगा तथा भष्म पितामह, अभिमन्यू भोमसेन, सात्यकि, केकय राज कुमार, वृष्ट घुम्न, द्रुपद और भेदि तथा मत्स्य देश के राजानो पर बाणो की भयकर वर्षा होने लगी। चारो ओर से मारो मारो' की ध्वनि अाने लगी। धनुप की टकारों, चीत्कारो. चिंघाडों आदि की ध्वनि से भीषण वातावरण उपस्थित हो गया।
तब लाखो क्षत्रिय वीर राजकुमार श्वेत की रक्षा में लग गए। उन्होने भीष्म जी के रथ को चारो ओर से घेर लिया । वडा हा घनघोर युद्ध होने लगा। भीम जी का मुख मण्डल लाल अगारे का नाई हो गया और उन्होने मारकाट मचाकर अनेक रथ सूने कर डाले। उस समय उनका पराक्रम वडा ही अद्भुत था। इधर राजकुमार श्वेत ने भी हजारो रथियो को गाजर मूली की भाति काट डाला । और अपने पैने वाणो से हजारो के सिर काट दिए। इस भयकर युद्ध को देखकर और श्वेत द्वारा मारकाट के वीभत्स दृश्य से घबराकर सजय अपना रथ छोडकर रण भूमि से चले गए आर उन्होने सारा वृतात धतराष्ट्र से जा सुनाया। इस भाषण करा-करी और मारकाट मे भीष्म पितामह ही निश्चल मेरु पर्वत समान खड़े थे। वे अपने दुस्त्यज प्राणो का मोह त्याग कर निर्भीक भाव से पाण्डवों की सेना का सहार कर रहे थे। जव उन्होने देखा
कि श्वत कुमार वडी तीव्रता व मुस्तैदी से कौरव सेना का सफाया कर . रहा था, तो वे स्वय ही उस के सामने आ पहुचे। परन्त श्वेत ६ पुमार ने अपने वाणों की वर्षा से एक बार तो भीम जी को पूर्ण
तया ढक लिया। इस के उत्तर मे भीष्म जी ने भी भीपण वाण वपी की। उस समय यदि भीष्म जी ने रक्षा न की होती तो श्वेत कुमार कौरवों की सारी सेना को नष्ट कर देता और यदि श्वेत न हाता तो ऐसा लगता था मानो भीम जी एक दिन मे ही सारी सेना