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V
युद्ध होने लगा
चेदिराज ने उलूक पर धावा बोला और बाणो की सावन भादो जैसी भड़ी लगा कर उसे पीडित करने लगा । इस के जवाब मे उलूक ने भी अपनी वीरता दर्शाई । गरज कर बोला- “उलूक का सामना करना लोहे के चने चबाना है, तनिक होश सम्भल कर लडो ।”
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चेदिराज ने सिंह गर्जना करते हुए कहा - "उलूक | यह दिन है दिन अभी रात्रि का अधकार नही हुआ । तुम्हे रात्रि मे ही चहकना शोभा देता है ।"
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"वस समझ लो कि तुम्हारे सिर पर उल्लू ही वोल गया ।" ' ऐसी बात है तो श्रा जानो ।”
तथा
खडगों की कट कट व खट खट की ध्वनि, धनुषो की टकारों, वो तथा हाथियो की चिंघाडे सब मिल कर इतना शोर वन गई थी कि दूर से कोई नही समझ सकता था कि क्या हो रहा है। वीर प्रापस मे इस तरह से लड रहे थे कि उन्हे अपने अतिरिक्त अन्य किसी का पता ही नही था । दूसरी ओर विकट गाडियो, वायुयानो के द्वारा एक दूसरे की सेना को भस्म कर डालने की चेष्टाए हो रही थीं. शतब्ती ( तोपे) लगी हुई विकट गाडिया शत्रुओ के वायुयानो को गिरा रही थी । गज सवार से गज सवार, प्रश्व सवार से श्रश्व सवार, पैदल से पैदल सैनिक लड रहे थे । इस प्रकार दोनो सेना का बडा दुर्धर्षं तथा घमासान युद्ध हो रहा था । इस प्रथम महायुद्ध को देखने के लिए देवता भी दौड प्राये थे और ऐसा विचित्र भयकर तथा प्रभूत पूर्व युद्ध देख कर रोमांचित हो रहे थे । सग्राम भूमि मे लाखो पदाति मर्यादा छोड कर संघर्ष कर रहे थे । वहा कोई अपना पराया न देखता था कोई एक दूसरे को पहचानता तक न था । शत्रु चाहे भाई ही क्यो न हो, पर उस के प्राण हरने की ही कोशिश की जा रही थी। पिता पुत्र की ओर और पुत्र पिता की ओर न देखता था । इसी प्रकार भाई भाई की, भानजा मामा की, मामा भानजे की और मित्र मित्र तक की परवाह न करता था। ऐसा जान पडता था मानो वे पूर्व जन्म से ही एक दूसरे के शत्रू रहे होगे जिन्हें ग्राज दिल के वलवले निकालने का अवसर मिला है ।