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________________ ३८० जैन महाभारत जब युद्ध यौवन पर पाया और मर्यादा हीन तथा अत्यन्त भयानक होगया तो भीष्म के सामने पडते ही पाण्डवो की सेना थर्रा उठी। महाराज युथिष्ठिर ने गरज कर कहा- "हम क्षत्रिय हैं । न्याय के लिए लड़ रहे हैं एक वार अवश्य ही मरना है। तो फिर मृत्यु से क्यो घबराना। हमे क्या तो प्राण देकर वीर गति को प्राप्त होना या विजय प्राप्त करनी है वीरो आगे बढो। विजय हमारी ही होगी। आज रण भूमि में दिखा दो कि पाण्डव और उन के सहयोगी किसी आतताई के आगे घुटने टेकना नहीं जानते। वह देखी विजय श्री वर माला लिए तुम्हारी प्रतीक्षा मे खडी है " युधिष्ठिर की इस उत्साह वर्धक घोषणा से पाण्डवों की सेना का आत्म बल बढ गया और उन्होने वैर्य से भीष्म जी के नेतृत्व मे लडने वाले योद्धाओ का सामना करना प्रारम्भ कर दिया। और इस महायुद्ध के प्रथम दारुण दिवस ही अनेको रणबाकुरे वीरो का भीषण सहार हो गया, अनेक बहनो का सुहाग कौरवो की हठ की वेदी पर बलि चढ़ गया। अनेक शिशु अनाथ हो गए। अनेक माताए निपूती हो गई । फिर भी पाण्डवो की सेना के पैर न उखडें पाण्डव बिना इस वात की चिन्ता किए कि कितने उन के संनिक मौत के घोट उतर गए घमासान युद्ध कर रहे थे तव दुर्योधन की प्रेरणा से दुर्मुख कृतवर्मा, कृपाचार्य, बिविशति पितामह भीप्म के पास चले गए। और इन पांच वीर अतिरथियों से सुरक्षित होकर वे पाण्डवो की सेना मे घुसने लगे। यह देख कर क्रोधातुर अभिमन्य अपने रथ पर चढा हुआ इन पाचो से रक्षित अपने परम आदरणीय दादा भीष्म जी के सामने आ डटा। और आते ही अपने एक ही पैने बाण से उन के रथ पर फहराती ताड़ के चिन्ह वाली ध्वजा काट कर गिरा दी और फिर इन सभी के साथ युद्ध छेड़ दिया। ओह ! कितना रोमांचकारी दृश्य था वह। एक ओर अजेय भीष्म पितामह और उन के रक्षक पाच छटे हुए सिद्ध हस्त अनुभवी । , वीर, और दूसरी ओर एक सोलह वर्षीय कुमार। वच्चा सा वीर विजली की तरह छो योद्धाओ पर टूट पड़ा। वह जानता था १ क किन से टक्कर ले रहा है, पर उसे किसी प्रकार की चिन्ता न
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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