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युद्ध होने लगा
दोनो के मध्य भी घोर युद्ध हो रहा था। जिस प्रकार मेघ पर्वत पर जल बरसाता है, इसी प्रकार विराट ने भगदत्त पर वाण वर्षा को परन्तु भगदत्त ने भी ईट का जवाब पत्थर से दिया, उस ने उस ने भी अपने बाणो से विराट को ऐसे ही ढक दिया जैसे मेघ सूर्य को प्राच्छादित कर देते है । इस प्रकार दोनों ओर से ही डट कर युद्ध होता रहा।
प्राचार्य कृप (कृपाचार्य) ने केकयराज बृहत्क्षत्र पर आक्रमण किया। वृहत्क्षत्र भी ताल ठोक कर मुकावले पर आगया। और दोनो एक दूसरे से जूझने लगे। कृपाचार्य ने इतने बाण चलाये कि एक बार तो केकयराज बाणो की छाव मे खो से गए। तब केकय राज ने अपना शौर्य दर्शाया और उन्हो ने कृपाचार्य को वाण वर्षा मे विलीन कर दिया। दोनो योद्ध। एक दूसरे का मान मर्दन करने के लिए जीवन का मोह त्याग कर बडे वेग से युद्ध करने लगे और कुछ ही देर मे दोनो ने एक दूसरे के सारथो तथा अश्वो को मार डाला। तब विवश होकर दोनो, रथहीन ही, आमने सामने के युद्ध के लिए खडग लेकर आ गए। दोनो मे बडा ही कठोर तथा भीपण युद्ध होने लगा।
राजा द्रपद ने जयद्रथ को घेर रखा था। दोनो वीरो मे भीपण युद्ध हो रहा था। जयद्रथ के तीन बाण द्रपद को घायल करने में सफल हो गए तब तिल मिला कर द्रपद ने ऐसे तीक्ष्ण वाण चलाये कि जयद्रथ भी विंध गया। और फिर दोनो एक दूसरे से बदला लेने के लिए युद्ध करने लगे। विकर्ण ने सुतसोम पर आक्रमण कर दिया दोनो मे युद्ध ठन गया। तब विकर्ण वोला"मुनसोम! क्या तुम्हारी मृत्यु मेरे ही हाथो होनी है ? पहले दिन ही मरने का इरादा है ?"
सुतसोम ने गरज कर उत्तर दिया- "मुझे मार डालने की समता तुम जैसे प्रातताईयो मे नही है। हा. यदि तुम्हे मृत्यु इतनी ही प्रिय है तो लो मै तुम्हारा काल बन कर सामने आगया।"
फिर क्या था, दोनों एक दूसरे पर पिल पडे। अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा कर एक दूसरे को मार डालने के लिए तुल गा । न कोई कम हो तो दाव भी चले। अस्त्र शस्य सारे जो उनके पास