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________________ जैन महाभारत फिर क्या था ? दोन। वीर भयकर गर्जना करते हुए एक दूसरे से युद्ध करने लगे सिंह समान गर्जना करते हुए चेदिराज धृष्टकेतु ने नौ बाण छोड कर राजा बाह्लीक को वीध डाला। इस पर ब' लीक से न रहा गया । क्रुद्ध रणोन्मत्त हाथी की तरह बुरी तरह धृष्टकेतु पर पिल पडा और दोनो मे भीषण सग्राम होने लगा । ३७६ 1 - राक्षसराज अलम्बुष के साथ क्रूरकर्मा घटोत्कच भिड गया देर दोनो था । दोनो एक दूसरे की टक्कर के दिखाई देते थे । कुछ एक दूसरे को अपने अपने हाथ दिखाते रहे। फिर जब इस प्रकार हाथ दिखाने का कोई परिणाम न दिखाई दिया तो घटोत्कच ने धड घड बाण वर्षां श्रारम्भ की, जिस से अलम्बुष को अवकाश ही न मिला और वह उन बाणो से छिद गया । पर भला अलम्बुष यह कैसे सहन कर सकता था कि शत्रु उसको छेद कर बिना कुछ घाव खाये रह जाये । उसने भी कुपित होकर तीव्र वाण वर्षा आरम्भ की। और झुकी नोक वाले वाण विशेषतया चलाए जिस से घटोत्कच के शरीर मे कई स्थानो पर रक्त चूने लगा । उधर शिखण्डी ने जो था तो नपुंसक, वीरो से कम न था, द्रोण पुत्र ग्रश्वस्थामा पर अश्वस्थामा तो उसे नपुंसक जान कर अपने गिराने का दम भरता था, पर जब सामना हुआ तो भ्रम टूट गया और कुछ ही देर के युद्ध से यह बात खुल गई कि शिखण्डी की टक्कर झेलता बच्चो का खेल नही है । परन्तु अवस्थामा सोचने लगा कि यदि नपुंसक भी उसे परास्त करदे तो फिर वह मुह दिखाने योग्य भी न रहेगा, इस लिए अश्वस्थामा क्रुद्ध होकर अपने पूर्ण रण कौशल को दिखलाने लगा और उस ने देखते ही देखते अपने तीरो से वीध कर शिखण्डी को ग्रधीर कर दिया । इस से शिखण्डी की भुजाओ का वल भी अगडाई लेकर जाग उठा और उसने भी बड़ी तीखी चोटें करनी प्रारम्भ कर दी। इस प्रकार यह दोनो वीर संग्राम भूमि मे भिन्न भिन्न वाणो का प्रयोग कर भीषण युद्ध करते रहे । सेनानायक विराट महावीर भगदत्त के मुकाबले पर थे उन परन्तु वीरता मे दूसरे आक्रमण कर दिया । बाये हाथ से मार
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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