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युद्ध होने लगा
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धुमन ने कहा- "गुरुदेव ! कोई चमत्कार तो दिखाईये।"
इस चुनौती को आचार्य द्रोण ने अपना परिहास समझ कर कुपित हो ऐसा वाण मारा कि धृष्ट द्युमन के धनुष के तीन टुकडे हो गए। ज्यों ही धृष्ट द्युमन ने शीघ्रता से दूसरा धनुष सम्भाला द्रोण.चार्य ने ऐसा काल दण्ड समान बडा भीषण बाण मारा कि वह धृष्ट द्युमन के शरीर मे जा घुसा परन्तु योद्धा धृष्ट धुमन को तो जैसे कुछ हुआ ही नहीं, यदि कुछ हुआ तो इतना कि उसकी रगो वहते रक्त मे तूफान मा गया और उसने विद्युत गति से तडातड़ वाण वर्षा प्रारम्भ करदी अपने चौदह बाणो से द्राण चार्य को बीध डाला। इस पर द्रोणाचार्य को भी काध आना स्वाभाविक था, उन्होंने भी बिफर कर तुमुल युद्ध प्रारम्भ कर दिया । पर वीर धृष्ट घूमन तनिक सा भी विचलित न हया। वह उसी प्रकार वीरता से लडता रहा।
वीर शव भी दूसरी ओर युद्ध रत है। उस ने सोमदत्त के पुत्र भूरिश्रवा पर धावा किया। भूरिश्रवा भी कुछ कम न था, उस ने शख के धावे का उत्तर तीक्षम वाणो से दिया। क्रुद्ध होकर शख ने भूरिश्रवा को ललकार कर कहा-"खडा रह ! तुझे अभी बताता हूं। शख तेरी मृत्यु बन कर आया है।"
उधर भूरिश्रवा ने भी चेतावनी दी-"मैं मृत्यु से टकराना हसा खल समझता हू। शंख का काम ही ध्वनि करना, चीखना है. शस्त्र वेचारा करता क्या है। कही स्वय अपनी ही मृत्यु का सन्देश तो नही ले आया ?"
इतनी बात पर शख का खन खोलने लगा। तिल मिलाकर उस ने बड़ा भयकर युद्ध आरम्भ कर दिया और एक अवसर पाकर उसको मूजा घायल कर दी। तव भूरिश्रवा प्रति शोध की भावना सात प्रोत हो गया, उस ने शख के गले तथा कंधे के बीच की हडो को लक्ष्य बना कर वाण वर्षा की। और शख घायल हो गया । पर दोनो ही उन्यत्त योद्धाओं मे भयकर युद्ध होता रहा।
अन्य योद्धानों की भांति राजा बाह्नीक भी अपना धनुष ले १९ युद्ध में उतर पड़ा। चेदिराज घट केतु उस के सामने प्रा डटा।