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जैन महाभारत
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निमत्रित किया। और समस्त स्थिति को विस्तार से प्रस्तुत करके पूछा कि- आप बतलाये कि इस उदंड एव निष्कारण बने शत्रु का कसे प्रतिकार किया जाय ? ...
यादववश को विनष्ट करने वाले विमूढ़ से हमारी तलवारें बाते करेगी। इसमे दो मत हो ही नही सकते कड़कते हुए दुर्दान्त योधी अनाधृप्टि ने गर्जना करी। परन्तु रणं कौशल का परिचय देते हुए दूरदर्शिता की बात कही कि-हम जिनेन्द्र शासन मे पढते एव पूर्वजो मे सुनते आ रहे हैं कि प्रति वासुदेव का वध वासुदेव के हाथो से ही होता है, अन्य से नही। अत प्रतिवासुदेव जरासिन्ध की मौत किस वीर के हाथो निर्णीत है, इस बात का निश्चय अवश्य कर लेना चाहिये ।
यादव कुल श्रेष्ठ, दशाहीग्रणीय समुद्रविजय जो अब तक समस्त परिस्थिति पर विचार रहे थे, ने शान्त परन्तु गम्भीर वाणी से सभा को लक्ष्य करके कहना प्रारम्भ किया कि हमारे वश की ज्योति वत्स श्री कृष्ण एव अनाधृप्टि ने जो कुछ कहां वह आपने सुना ! वैसे तो पापी को नष्ट करने के लिए उसका ,पाप. ही बहुत होता है। परन्तुं व्यवहारानुसार विचार करना बुद्धिमत्ता का चिन्ह है । सभी जानते हैं जब गीदड़ की मौत आती हैं तो वह नगर की तरफ दौडा करता है। वही अवस्था इस समय जरासिन्ध्र की है। हमने कभी उसे अपमानित नही किया और नाही आज तक धर्म विरुद्ध आचरण किया। परन्तु यदि तो भी व्यर्थ ही, वग विशेष से शत्रुता कल्पना कर जरासिन्ध को रक्तपात ही-प्रिय है तो निश्चय ही यह अन्याय उसे सदा सर्वदा के लिए समाप्त किये विना न रहेगा। मुझे वह समय अच्छी तरह स्मरण है जवकि देवकी देवी ने प्रकृति प्रदत्त सात महान शुभ सूचनायो को प्राप्त करके श्री कृष्ण को जन्म दिया था और पश्चात हमारे पूछने पर धुरन्धर नैमित्रिको ने घोपणा की थी कि “यह कुलदीपक कुमार त्रिखडेश्वर वासुदेव पद को प्राप्त करेगा" हमे तो तभी निश्चय हो गया था कि प्रति वासुदेव जरा सिन्ध के अन्याय को समाप्त करने का श्रेय इसी वालक को प्राप्त होगा। परन्तु यदि तो भी आप यही निश्चय करना चाहते है कि जरासिन्ध की मृत्यु किसके हाथो होगी तो उसका सीधा सा उपाय