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जरा सिन्ध वध
सारी पृथ्वी कापती है । और वह जिसे तुम सिंह बता रहे हो, वह दवा कर भाग गया है और सागर तट पर
भी मेरे ही भय से दुम उसने आश्रय लिया है ।"
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" कही यह ग्रहकार ही तुम्हे न ले डूबे ?" नारद जी बोले ।
"बस बस भिखारी हो कर नरेश के मुह मत लगो । वरना कहीं मुझे तुम्हे ही ठीक न करना पड़े जरासन्ध क्रोध में नारद जी के साथ उचित व्यवहार करना भी भूल गया ।
किन्तु नारद जी भी उसकी घुडकियो में आने वाले न थे, उन्होने हस कर कहा "जब मिथ्याभिमान किसी को प्रधा बना देता है तो मुझे उस पर दया आती है । ठीक है तुम जैसो का इलाज श्री कृष्ण और उनके भाई बलराम जी के पास ही है । पर एक बात मानो स्वयं मरना है तो मरो, शिशुपाल बेचारे को क्यों मरवाते हो ?
जरासन्ध लाल पीला हो कर नारद जी की ओर झपटा, पर इससे पूर्व कि कोई भयंकर अन्याय होता, नारद जी वहा से चले गए और जा कर श्री कृष्ण के दरबार में दम लिया श्री कृष्ण ने बंडे श्रादर सत्कार से उनका स्वागत किया। नारद जी बोले" आप इधर आराम से सिंहासन पर विराजमान हैं और उधर जरासन्ध अपनी सेनाए लेकर कस वध का बदला लेने आ रहा है । श्री कृष्ण हसते हुए बोले- "मुनिवर जिस का मस्तक फिर गया हो वह ऐसे ही कार्य किया करता है। आता है तो आने दो । द्वारिका के निकट आते ही उसे अपनी भूल ज्ञात हो जायेगी ।"
"कही मृग और कछुए की दौड की ही भाति वात न हो जाए । उसके साथ शिशुपाल भी अपनी अपनी सेना सहित है । इतना अहकार है उसे कि श्राज तो वह शिष्टाचार को भी तिलाजली दे श्राया है। लाखों सैनिक है ।"
नारद जी की बात सुनते हो श्रीकृष्ण गम्भीर हो गए। उनकी बार बार धन्यवाद किया और स्वयं जरासिन्ध के मुकाबले की तैयारी में लग गए उन्होंने तत्क्षण प्रपनो सम्पूर्ण राज सभा को