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________________ २४ जैन महाभारत सजवाई और उन्हे नृप के साथ कूच करने का आदेश दिया : स्वय । भी साथ हो गया। जरासिन्ध ने उसी समय शिशु पाल आदि अपने सहयोगियो के पास दूत भेज कर, उन्हे सेनाएं लेकर तुरन्त अपनी सेना से आमिलने का सन्देश भेज दिया। और स्वय सेनाए लेकर चल पडा। ज्योही उसने नगर से प्रस्थान किया, मुकुट एक झटके से नीचे आ गिरा। मत्री ने मन ही मन विचार किया कि यह अपशकुन किसी भावी सकट का सूचक है। पर क्रोध. मे बुद्धि को ताक पर रख आये हुए नरेश को कुछ भी समझाना व्यर्थ समझ कर वह चुप रह गया । रास्ते मे शिशुपाल की सेनाए आ गई, जिसके साथ स्वय शिशुपाल भी था। जव लाखों की संख्या मे सैनिक एकत्रित हो गए तो जरासिन्ध अहकार से सोचने लगा कि कृष्ण को वह क्षण भर मे परास्त कर देगा और उस के रक्त से अपने और अपनी बेटी के हृदय मे सुलगती प्रतिशोध की अग्नि को शांत कर सकेगा। । लाखो की संख्या मे सैनिक साथ थे, जरासिन्ध श्री कृष्ण को परास्त करने की आशाओ मे झूमते चला जा रहा था, कि नारद जी आ पहुचे। उन्होने पूछा- “राजन् ! आज किस शत्रु पर चढाई की ठान ली है।' "श्री कृष्ण से कस बध का बदला लेने जा रहा है।" जरा सिध वोला। . नारद जी मुस्करा पड़े। बोले-"दही के भरोसे से कपास खाने की भूल मत करो।" अगाल जब सिहरनी पड़ती है जो चाहता है कहा -"तनिक नाम "क्या मतलब?" जरासिन्ध ने अकड़ कर पूछा। "मतलव यह है कि भेड जब भेड़िये से बदला लेने चले, . श गाल जव सिंह को ललकारने का साहस करे, तो, उसके साहस की तो प्रशसा करनी पडती है पर इस दुस्साहस पर उसे अपना औकात पहचानने की कहने को जी चाहता है।" नारद जी वोले! .. ___ जरासिंध का खून खौल उठा । उसने कहा - "तनिक सभ्यता ' से वात करो। क्या नहीं जानते कि मैं जरासिन्ध हूं जिसके नाम से
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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